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किये, अंगुलियों में सुन्दर विभिन्न प्रकार की अंगूठियां पहनी, केशों को विभन्न फूलों से सजाये। उत्तम प्रकार के कड़े तथा बाजूबंद, बहेरखे से, स्तंभित हो गई है भुजाएं जिसकी ऐसे, इस प्रकार अधिकरुप के कारण शोभावाला बना, कान के कुंडल पहिनने से मुंह चमकने लगा, मस्तक पर मुकुट धारण करने से शिर शोभा देने लगा। हृदय हारों से ढकने के कारण सविशेष दिखाई देने लगा, अंगुठियों से पीली लगने वाली अंगुलियां देदिप्यमान लगने लगी। यह सब पहनने के पश्चात् उसने लंबे व लटकते दुपट्टा याने खेस अपने अंग पर अच्छी तरह से डाला और अन्त में वह सिद्धार्थ क्षत्रिय चतुर कारीगरों की उत्तम कारीगरी से बनाये हुए विविध मणि, सुवर्ण और रत्नजड़ित रमणीय, अत्यन्त कीमती, चमकते बनाये हुए, कोई न जान सके व खुल न जाय वैसे उत्तम प्रकार के सुन्दर वीरवलय धारण किये। अधिक क्या वर्णन करे? मानो कि वह सिद्धार्थ राजा प्रत्यक्ष कल्पवृक्ष ही हो ऐसे अलंकृत और विभूषित हुए। ऐसे सिद्धार्थ राजा के शिर पर छत्र धारण करने वालों ने कोरंट वृक्ष के पुष्पों की मालाओं से अलंकृत किया है ऐसा छत्र धारण किया तथा साथ ही श्वेत चामर दोनों तरफ बीजे जाने लगे। इस प्रकार से तैयार बना हुआ, अनेक गणनायक याने अपने समुह में उत्तम माने जाने वाले पुरुष, दण्डनायक याने अपने ही देश की चिंता करने वाले, माण्डलीक राजाओं,