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युवराजों, संतुष्ट बने हुए राजा द्वारा दिये गये पट्टबंध से विभूषित किये राजदरबारियों से, कोतवाल, मण्डप के स्वामी, कितने ही कुटुम्ब के स्वामी, राज्य सम्बन्धी काम-काज मंत्री एवं मंत्रियों से विशेष सत्ता धारण करने वाले महामंत्री, खजाने याने तिजोरी के अधिकारी, द्वारपाल याने चोकीदार, अमात्य याने राजा के सम समय में जन्में हुए राज्य • के मुख्य सत्ताधारी वजीर, दास-चाकर, राजा के आसन को ठीक कर समीप बैठने वाले, हमेशा नजदीक रहकर सेवक तुल्य मित्रगण, टेक्स याने कर देने वाले लोग, नगर में निवास करने वाले नागरिक, वणिक-व्यापारी, नगरसेठ, लक्ष्मीदेवी के चिन्हांकित सोने का शिर पर पट्टा बांधने वाले, चतुरंगी सेना के स्वामी, सार्थवाह, राजदूत तथा अन्य राजाओं से अपने राजा की संधी कराने वाले संधिपालक याने एलची, ऊपर दर्शित सर्व पुरुषों के साथ परिवरित ऐसा सिद्धार्थराजा जिस प्रकार श्वेत महामेघ से चन्द्रमा निकलता है जैसा या ग्रहों, चमकते नक्षत्र और ताराओं के बिचमें चन्द्रमा शोभता है उसी भांति सब लोगों के मध्य दर्शनीय चन्द्रमा की भांति वह नरपति स्नान गृह से बाहर आये। वे जहां बाह्य सभा का स्थान है वहां आते है। वहां आकर सिहांसन पर • पूर्वदिशा सन्मुख मुंह करके बैठते है। बैठकर अपने से उत्तर-पूर्व दिशाभाग में याने ईशान कोने में जिन पर श्वेत वस्त्र 57
६३) स्नान गृह में से बाहर आकर के
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