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अनेक जाति के उत्तम सुगन्धिवाले तेलों से मालीस करवाकर चुपड़वाकर, उन तैल आदि से पुरुषों के द्वारा मर्दन किये गये सिद्धार्थ राजाने तेलचर्म शय्या पर स्थापन होकर, पुरुषों से चपी करवायी, जिससे उन्हें कसरत करते हुए लगी थकान उतर गयी। तेल से मर्दन करने वाले व चंपी करने वाले पुरुष कैसे थे? यह बताते है- मर्दनादि करने के सर्व उपायों में विचक्षण, जिनके परिपूर्ण यानी खोड़-खांपण से रहित जो हाथ और पांव के तलवे सुकोमल है, ऐसे, तेलादि का मर्दन करके शरीर में प्रवेश कराये गये ऐसे तेल विगेरे को पुनः शरीर में से बाहर निकालने के गुणों में अतिशय विशेषज्ञ, अवसर के ज्ञाता, कार्य में थोड भी देर नहीं करने वाले, बोलने में चतुर अथवा मर्दन करने वाले मनुष्यों में प्रथम पंक्ति के अग्रेसर, विनयवान, नयी नयी कलाओं को ग्रहण करने की अपूर्व शक्तिवाले एवं परिश्रम को जितने वाले याने मर्दनादि करते हुए थक नहीं जाय ऐसे मजबूत बांधा के पुरुषों के द्वारा तेलादि मर्दन करवाया तथा चंपी करवाई, जिससे सिद्धार्थ राजा की थकान उतर गयीं। इसके बाद सिद्धार्थ क्षत्रिय व्यायाम शाला से बाहर निकलते
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है।
६२) कसरत शाला से बाहर निकलकर वे जहां स्नानगृह है वहां आते हैं। वहां आकर स्नान घर में प्रवेश करते