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हिरण की चक्षु मृदुता के साथ धीरे-धीरे खुलने लगी हैं, ऐसा उज्जवल प्रभात होने लगा। फिर लाल अशोक की प्रभा के पूंज समान, केसुडा के पुष्प जैसा, तोते के मुख, चिरमी के आधे भाग की लालास एवं बड़े-बड़े सरोवरों में उत्पन्न कमलों को प्रस्फुटित करने वाला हजारों किरणों के तेज से देदिप्यमान दिनकर-सूर्य निकल गया है तब सिद्धार्थ क्षत्रिय शय्या से उठते है।
६१) सिद्धार्थ राजा शय्यामें से उठकर और बाद में उस शय्या से उतरने हेतु रक्खे हुए पादपीठ पर पैर रखकर, उस | पादपीठ से नीचे उतरते है। नीचे उतरकर जहां कसरतशाला है वहाँ आते है। आकर कसरतशाला में प्रवेश करते है। प्रवेश करके अनेक प्रकार के व्यायामों को करने के लिए श्रम करते है, शरीर की मालीश करते है, परस्पर भुजादि अंगो को मोडते है, मल्लयुद्ध करते है, विभिन्न प्रकार के आसनादि करते है। इस प्रकार परिश्रम करके संपूर्ण शरीर में और अंग प्रत्यंग में प्रीति उत्पन्न करनेवाला, सूंघने योग्य महक से परिपूर्ण, जठराग्नि को उद्दीप्त करनेवाला, ताकत बढ़ानेवाला, सभी इन्द्रियों और अंग प्रत्यंग को सुख से परिपूर्ण करने वाला, कामोत्तेजक जो भिन्न-भिन्न औषधियों के रस से सौ बार पकाया हुआ शतपाक तेल, विभिन्न औषधियों के रस से हजार बार पकाये हुए सहस्त्रपाक तेल विगेरे
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