________________
0000000000000
५७) “ स्वरूप से सुंदर, शुभ फल देनेवाले व मंगलकारी, ऐसे मेरे द्वारा देखे हुए; अन्य खराब स्वप्नों से निष्फल न बने अतः अब मुझे सोना उचित नहीं है। ऐसा सोचकर त्रिशला क्षत्रियाणी देव व गुरुजन सम्बन्धी प्रशस्त मंगलकारी और मनोहर ऐसी धार्मिक कथाओं द्वारा स्वप्नों के रक्षणार्थ जागरण करती हुई तथा निद्रा के निवारण द्वारा ऊन स्वप्नों का ही स्मरण करती हुई रहती है।
५८) अब सिद्धार्थ क्षत्रिय प्रभातकालीन समय में कौटुम्बिक पुरुषों को याने सेवकों को बुलाता है। उन कौटुंबिक पुरुषों को बुलाकर इस प्रकार कहा कि- “ हे देवानुप्रियो! आज उत्सव का दिन है, जिससे जल्दी बाहर के सभामण्डप को यानी कचहरी को विशेष प्रकार से झाड-फूंक कर धूलादि को दूर कर, सफाई कर सुगन्धित जल का छिंटकाव
करके व गाय के गोबर से लिंपवा करके पवित्र करो। तथा उत्तमोत्तम सुगन्धित पंचवर्णी पुष्पों को उचित-उचित स्थानों ॐ पर सजाकर, संस्कार युक्त काला अगरु, उच्चकोर्टी का कंदरुप, सेलारस और जलता हुआ दशांगधूप से सभागृह
को सुगन्ध युक्त करो। जहां तहां सुगन्धित उत्तम चूर्ण छंटवाकर तथा सुगन्धित गुटिकाएं रखवाकर मानों कि वह स्थान सुगन्ध का खजाना हो ऐसा जल्दी ही बनाकर और दूसरों से बनवाकर और दूसरो से बनवाकर एक बड़ा सिंहासन 512
卐00tore