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संख्यातयोजन लम्बे दण्डाकार शरीर से बाहर निकालता है। वैसा करके वह देव भगवान को एक गर्भ से हटाकर दूसरे गंभ में स्थापित करने के लिए अपने शरीर को निर्मल-अधिक अच्छा बनाने के लिए इस शरीर में रहे हुए स्थुलपुद्गल परमाणुओ को झाड़ता है, याने इन पुद्गल परमाणू जैसे कि रत्न के, वजके, वैडूर्यरत्नके, लोहिताक्षरत्नके, मसारगल्लरत्नके, हंसगर्भ, पुलकके, सौगन्धिकके,ज्योतिरसके, अञ्जनके, अञ्जनपूलके, चांदीके, जातरुपके, सुभगके, अंकके, स्फटिकके और रिष्टरत्नके इन सभी जाति के रत्नों की तरह स्थूल है इसलिए इस प्रकार के अपने शरीर में जो स्थूलपुद्गल परमाणु है उनको झाड देते है और उनके L स्थान पर सूक्ष्म पुद्गलों को याने साररुप ऐसे श्रेष्ठ पुद्गलों को ग्रहण करता है ।
२७) इस प्रकार भगवान के पास जाने के लिए अपने शरीर को तद्योग बनाने के लिए अच्छे-अच्छे सूक्ष्म पूद्गलों को ग्रहण करके फिरसे वैक्रिय समुद्घात करता है, ऐसा करके अपने मूल शरीर से भिन्न अलग एसा दूसरा उत्तम प्रकार की शीघ्रतावाली, चंचल तेजी के कारण प्रचण्ड (उग्र), अन्य सभी गतियों से विशेष तेज, आवाज करती, दिव्य शीघ्र गति के चलते चलते याने नीचे उतरता वह, असंख्य द्विप समुद्रों के बिचमें तिर्छ रहे हुए जम्बूद्वीप में आया हुआ भरत क्षेत्र है और उसमें जहां माहण कुण्डग्राम नगर आया हुआ है, जिसमें रिषभदत्त ब्राह्मण का घर है, तथा उस घर में देवानंदा ब्राह्मणी
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