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अलग - अलग विशेष फल का निश्चय करके उसने अपनी इष्ट यावत् मंगलरूप, प्रमाणोपेत, मधुर और शोभायमान भाषा से बात करते करते त्रिशला क्षत्रियाणी को इस प्रकार कहा।
53) "हे देवानुप्रिये! तुमने प्रशस्त स्वप्न देखे है। हे देवानुप्रिये! तुमने कल्याण रूप स्वप्न देखे हैं। इसी तरह उपद्रवों को हरने वाले, धन के हेतु रूप, मंगलरूप, सुशोभित, आरोग्य, संतोष, लम्बी आयु, कल्याण व वांछित फल के लाभ को करने वाले ऐसे तुमने स्वप्न देखे हैं'। अब उन स्वप्नों का फल बताते है- वह इस प्रकार है- "हे देवानुप्रिये! रत्न, सुवर्णादि अर्थ का लाभ होगा। हे देवानुप्रिये ! भोग का लाभ प्राप्त होगा। हे देवानुप्रिये ! पुत्र का लाभ होगा। हे देवानुप्रिये ! सुख का लाभ होगा। हे देवानुप्रिये! राज्य का लाभ होगा। वास्तव में ऐसा है कि हे देवानुप्रिये! तुम नौ महीने बराबर संपूर्ण होने के पश्चात उसके ऊपर साडे सात दिन बीत जाने पर हमारे कुल में ध्वज समान, दीपक समान, पर्वत जैसा अचल, मुकुट सद्दश, तिलक समान, कीर्ति को बढानेवाला, कुल का अच्छी तरह निर्वाह करने वाला, कुल में सूर्य सद्दश | तेजस्वी, कुल के सहारे स्वरूप, कुल की वृद्धि करने वाला, कुल के यश में अभिवृद्धि करने वाला, कुल को
वृक्ष समान
आश्रय देने वाला, कुल की इस प्रकार से विशेष वृद्धि को करने वाला, ऐसे पुत्र को जन्म दोगी। वह जन्मपाने वाला
Private &
4045 140 1500 40 500 40