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कैसी है? इष्ट याने सिद्धार्थ क्षत्रिय को वल्लभ लगे ऐसी, जिसे सुनने की हृदय में इच्छा रहे ऐसी, और इसलिए प्रिययानी उस वाणी पर द्वेष न आवे ऐसी, मनको विनोद कराने वाली, अतिशय सुन्दर होने से मनमें बराबर बस जाए ऐसी अर्थात कभी नहीं भुली जाए ऐसी, सुन्दर ध्वनि, मनोहर वर्ण, और स्पष्ट उच्चारण वाली, समृद्धि को देनेवाली, उस प्रकार के वर्णो से युक्त होने से उपद्रवों को हरने वाली, धन को प्राप्त कराने वाली, अनर्थों के विनाशरूप जो मंगल को करने में प्रवीण, अलंकारादि से सुशोभित, जिसे सुनते ही तुरन्त ही हृदय में अर्थ आ जाय ऐसी, सुकोमल होने से हृदय को प्रिय लगे ऐसी, हृदय को अल्हादकारी यानी हृदय के शोकादि को दूर करने वाली, जिसमें वर्ण, पद तथा वाक्य अल्प और अर्थ अधिक निकले ऐसी, सुनते ही कर्ण को सुखकारी, मधुर एवं लालित्यवाले वर्णो से मनोहरइस प्रकारकी वाणी बोलती वह सिद्धार्थ क्षत्रिय को जगाती है।
५०) उसके बाद वह त्रिशला क्षत्रियाणी सिद्धार्थ क्षत्रिय की आज्ञा पाकर विविध प्रकार के मणि, सुवर्ण व रत्नों की रचना से आश्चर्यकारी ऐसे सिंहासन पर बैठती है। बैठकर श्रम दूर करके, क्षोभ रहित होकर के, सुखसमाधिपूर्वक, उत्तम आसन वर बैठी हुई उस त्रिशला क्षत्रियाणी ने सिद्धार्थ क्षत्रिय को उस उस प्रकार की इष्ट यावत्
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