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- कुलो में, राजन्यवंश कुलों में ज्ञातवंश कुलों में क्षत्रियवंश कुलों में, हरिवंश कुलों में या दूसरे वैसे विशुद्ध जाति-वंश और विशुद्ध कुलवाले कुलों में बदलना योग्य है।
२५) हे देवानुप्रिय! तुम जाओ, श्रमण भगवान महावीर को माहणकुण्ड गाम नामे नगर में से कोड़ाल गोत्र के रिषभदत्त ब्राह्मण की भार्या जालंधर गोत्र की देवानंदा ब्राह्मणी की कुक्षि से हटाकर क्षत्रियकुण्ड गाम नाम के नगरमें ज्ञातवंश के क्षत्रियों के वंशज और काश्यपगोत्र के सिद्धार्थ क्षत्रिय है उनकी भार्या वशिष्ठ गोत्र की त्रिशला क्षत्रियाणी है उसकी कुक्षिमें गर्भतया स्थापित करके मुझे मेरी इस आज्ञा को शीघ्र ही वापस लौटाओ।
२६) उसके बाद पैदलसेना के सेनापति वह हरिणेगमेसी देव, देवेन्द्र शक्र की उपर्युक्त आज्ञा सुन खुश हुआ तथा उसका मन है मयूर नाचने लगा। उसने दोनो हथेली इकट्ठीकर अंजलि जोडकर " देव की जैसी आज्ञा " इस प्रकार इस आज्ञा के वचन को
वह सविनय स्वीकार करता है। आज्ञा के वचन को विनयपूर्वक स्वीकार कर वह हरिणगमेसी देव, देवेन्द्र-देवराज शक्रके पास से निकलता है, नीकल कर उत्तर पूर्व की दिशा के भाग में याने ईशान कोण की ओर जाता है, वहां जाकर वैक्रिय समुद्धात से अपने शरीर को बदलने का प्रयत्न करता है, ऐसा करके वह अपने शरीर में रहे हुए आत्मप्रदेश समुह को और कर्मपूद्धगल समूह को
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