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5 आया हुआ षट्पद याने भ्रमरों का समुह उन मालाओं पर, नीचे और दोनो ओर आसक्त-लीन होकर कानो को मधुर लगे वैसे 5 सरस और मधुर गुंजन कर रहा है। इस प्रकार की मालाएं आकाश से उतरती देखती है।..
............५ ३९) अब छठे स्वप्न में माता चन्द्रमा को देखती है। वह चन्द्रमा कैसा है? गाय का दूध, झाग, जल बिन्दू और चांदी के कलश जैसा श्वेत कांतिवाला, शान्तिदायक, हृदय और नयनों को वल्लभ लगे ऐसा, संपूर्ण मण्डल युक्त यानी सोलह कलाओं से खिला हुआ, घोर अंधकार के द्वारा गाढ व गंभीर ऐसी वन की झाडी में भी अंधकार का नाश करने वाला, मास वर्ष इत्यादि प्रमाण को करनेवाला जो शुक्ल व कृष्ण ऐसे दो पक्ष, उस पक्ष के मध्यमें में रही हुइ जो पूर्णिमा में शोभती कलाओं वाला, कुमुद के वन को विकस्वर करने वाला, रात्रि को शोभायमान करनेवाला, राख, चुना आदि के द्वारा अच्छी तरह से माँजकर (घीसकर) उज्वल बनाये हुए दर्पण जैसा, हंस जैसे उज्जवल वर्णवाला, ग्रह, नक्षत्र, तारा विगेरे जो ज्योतिष, उनके मुंह को शोभायमान करने वाला, अर्थात उनमें अग्रसर, तथा शांत समुद्र के पानी को ऊपर उठाने वाला, कामदेव के तरकस (भाता) समान यानी जैसे धनुर्धारी पुरुष तरकस को पाकर के उसमें से बाणों को लेकर उन बाणों से मृगादि प्राणियों का घात करते हैं, वैसे ही कामदेव भी चन्द्र के उदय को पाकर लोगों को (विरही औरतों को) काम बाण से व्याकुल करता है अर्थात चन्द्रोदय
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