________________
093e
४१) उसके पश्चात त्रिशला क्षत्रियाणी आठवें स्वप्न में उत्तमजाति के सुवर्णमय दण्ड पर रहे हुए ध्वज को देखती है। वह ध्वज ॐ कैसा है? हरे, काले, पीले और श्वेत वर्णवाले होने से रमणीय, सुकोमल, और वायु से इधर-उधर लहराते ऐसे जो ढ़ेर सारे र मोर पीच्छ, उस मोर पीछरूपी उसके केश न हो, ऐसे ध्वज को देखती है। यह ध्वज अधिक शोभावाला है। उस ध्वज के ऊपरी हिस्से में सिंह चित्रित है, वह सिंह स्फटिक रत्न, शंख, अंकरत्न, मोगरा का पुष्प, पानी के बिन्दू व चांदी के कलश के समान सफेद है। इस प्रकार के अपने सौंदर्य से रमणीय लगते हुए सिंह से वह ध्वज शोभा दे रहा है।
वायु के तरंगो से ध्वज लहराता है, जिससे उसमें चित्रित सिंह भी उछल रहा है, जिससे यहाँ कवि उत्पेक्षा करता है कि - मानो वह सिंह गगन तल को चीर डालने हेतु प्रयास कर रहा हो। यह ध्वज सुखकारी व मन्द वायु के कारण चलायमान होता हुआ, अतिशय बडा व मनुष्यों को सुन्दर देखने योग्य लगता है। ८ 6 (42) उसके पश्चात् उत्तम सुवर्ण तुल्य देदीप्यमान, स्वच्छ जल से परिपूर्ण, उत्तम कल्याण को सूचित करने वाली जगमगाती
कान्तिवाला, कमलों के समुदाय से चारों तरफ से सुशोभित ऐसा चांदी का कलश माता को नवमें स्वप्न में दिखाई देता है। सभी प्रकार के मंगल के भेद इस कलश में दृष्टिगत हो रहे है, ऐसा मंगलकारी यह कलश है। उत्तम प्रकार के रत्नजड़ित व कमल के
स卐elamyelane
sationinternational
Forte Penal Use Only