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अष्टापदनामक पशु, चमरी गाय, तरह-तरह के जंगली जानवर, हाथियों, अशोकलतादि वन लताएं, एवं पद्मलताएं याने 卐 कमलिनियाँ-इन सब के मनोहर चित्र, उन सबके द्वारा मन को आश्चर्यचकित करने वाला, मधुर स्वर से गाये जाने वाले गायन
एवं बजाये जाने वाले वाजिंत्र, उन गीत वाजिंत्रो के संपूर्ण नादवाला, जल से भराहुआ, घटाटोप बना हुआ व विस्तार वाला जो मेघ, उसकी गर्जना सद्दश देव दुंदुभियों के बड़े शब्दों द्वारा निरंतर सकल जीव लोक को पूर्ण करता हुआ, संपूर्ण जगत को शब्दों से व्याप्त करता हुआ, काला अगर, उत्तम कंद्रुप, सेलारस, जलता हुआ दशांगादि धूप, तथा अन्य भी सुगन्धित द्रव्य, उन सभी पदार्थों की उत्तम सुगंध से रमणीय, नित्य प्रकाशवाला, श्वेत रंग का, उज्जवल कान्तिवाला, उत्तम उत्तम देवताओं से सुशोभित सातावेदनीय के उपभोगवाला, उत्तमोत्तम विमान को त्रिशला देवी बारवे स्वप्न में देखती है।.... ...............१२
४६) उसके बाद त्रिशला क्षत्रियाणी तेरहवे स्वपनमें रत्नो की राशी देखती है। वह रत्नराशी जमीन पर रही हुई है फिर भी गगन मण्डल के अन्तिम छोर याने किनारे को तेज से चक-चकित करता है। इसमें पुलाकरत्न, वजरत्न, इन्द्रनीलरत्न, यानी नीलम, पन्ना, सस्यकरत्न, कर्केतनरत्न, लोहिताक्षरत्न, मोती, मसारगल्लरत्न, प्रवाल, स्फटिक, सौगन्धिकरत्न, हंसगर्भरत्न,
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