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雙雙懷
था ऐसे समय में उत्तराफाल्गुणी नक्षत्र को योग आने पर हितानुकम्पक ऐसे हरिणेगमेसी देवने शक्र की आज्ञा से माहण कुण्डग्राम नगरमें से कोड़ालगोत्र के रिषभदत्त ब्राह्मण की पत्नी जालंधर गोत्र की देवानन्दा ब्राह्मणी की कुक्षि से भगवान को लेकर क्षत्रियकुण्डग्राम नगर में ज्ञातवंश के क्षत्रियों मे से काश्यप गोत्र के सिद्धार्थ क्षत्रिय की पत्नी वाशिष्ट गोत्र की त्रिशला क्षत्रियाणी की कुक्षि में थोडा भी कष्ट न हो इस प्रकार रख दिया।
३१) श्रमण भगवान महावीर तीन ज्ञानवाले थे। १. “ मैं ले जाया जाऊंगा" ऐसा जानते है, २. “मैं ले जाया जा रहा हुं" ऐसा वे नहीं जानते, ३. “किन्तु मैं ले जाया जा चुका हूं" ऐसा वे जानते है |
३२) जिस रात को भगवान महावीर जालंधर गोत्रवाली देवानंदा ब्राह्मणी की कुक्षि से लेकर वाशिष्ट गोत्रवाली त्रिशला क्षत्रियाणी की कुक्षि में गर्भतया रख दिये, उस रात को देवानन्दा ब्राह्मणी अपने बिछौने में अर्ध जाग्रतावस्थामें उसने अपने आये हुए इस प्रकार के उदार, कल्याणकारी, शिवरूप, धन्य और मंगलकारी शोभावाले ऐसे चौदह महा स्वप्नों को त्रिशला क्षत्रियाणी ने छीन लिया है, ऐसा देखा और देखकर वह जग गई। वे चौदह स्वप्न हाथी, वृषभ विगेरे उपर्युक्त गाथा में कहे हुए है ।
३३) अब जिस रात में भगवान महावीर को जालंधर गोत्रवाली देवानन्दा ब्राह्मणी की कुक्षि से लेकर वाशिष्ठगोत्रवाली
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