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२८) अब वह देव जिस उत्तम प्रकार की, चंचल, प्रचण्ड और दूसरी अन्य गतियों से तेज, शीघ्र दिव्यगति से वापस असंख्य द्वीप- समुद्रों के बिचमें होकर और हजार-हजार योजन की विशाल छलांगे लगाता वह देव जिस और सौधर्म नाम के कल्प में याने देवलोकमें सौर्धमावंतसक नामक विमान में शक्र नामक सिंहासन पर देवेन्द्र-देवराज शक्र जहां बैठा हुआ है, उस तरफ उनके पास आता है, आकर देवेन्द्र - देवराज शक्र की आज्ञा को पुनः उन्हे वापस तुरन्त लौटाता है अर्थात् आपने जो आज्ञा मुझे दी थी उसे कार्यान्वित कर दी है, ऐसी जानकारी देता है।
२९) उस काल और उस समय में श्रमण भगवान महावीर तीन ज्ञान सहीत थे। १: मुझे बदलकर अन्यत्र लेजाया जायेगा ऐसा जानते है, २: किन्तु स्वयं अपने आपको बदलाते नहीं जानते, ३) परन्तु स्वयं बदले गये है ऐसा जानते है।
३०) उस काल और उस समय में जब वर्षा ऋतु चल रही थी और उस ऋतु का तीसरा महीना और पांचवां पक्ष चलता था या महीने का कृष्ण पक्ष तथा उस समय कृष्ण पक्ष की तेरहवी तिथि याने त्रयोदशी आई हुई थी। भगवान को स्वर्ग में से च्यवकर देवानन्दा ब्राह्मणी के गर्भ में आये हुए करीब ब्यासी रात-दिन व्यतीत हो चुके थे और त्रयोदशी के दिन त्यांशीवा रात-दिन चल रहा था, उस त्यांसी वे दिन की ठीक मध्यरात्रि में याने अगली रात का अन्त और पिछली रात का प्रारंभ हो रहा
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