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और धूल के रजकण से वह मैली न हो जाय। मच्छरों के उपद्रव को मिटाने के लिए लाल कपड़े की मच्छरदानी भी लगी हुई थी। ऐसी यह सुन्दर शय्या, कोमल चमड़ा, रुई, बुर की वनस्पति, मक्खन और आक की रूई से भी अति कोमल थी । पालकों Q से निपुण इस को सुगन्धित पुष्प, अत्तर, आदि पदार्थों से अति सुखद बना दी गयी थी। ऐसी शय्या में अर्ध जाग्रतावस्था में
रात्रि की समाप्ति होने पर और अगली रात के प्रारंभ में याने मध्य रात्रि के समय इस प्रकार के उदार चौदह महास्वपनों को देखकर जग जाती हैं। उन चौदह स्वप्नों के नाम इस प्रकार से है:- १: गज(हाथी), २: वृषभ(बैल), ३: सिंह, ४: अभिषेक कराती लक्ष्मी देवी, ५: माला - पुष्पमाला युगल, ६: चन्द्र, ७: सूर्य, ८: ध्वज, ९: कुंभ, १०: पद्मसरोवर, ११: क्षीरसमुद्र, १२: विमान या भवन, १३: रत्न राशि, १४: निर्धम अग्नि।
३४) अब उस त्रिशला क्षत्रियाणी ने सबसे प्रथम हाथी को देखा, वह हाथी विशाल शरीरवाला, चार दन्तवाला, ऊंचा, पानी बरसने के बाद बादल जैसा श्वेत, तथा इकट्ठे किये हुए मोती के हार, क्षीर समुद्र, चन्द्रमा की किरणें, जलबिंदु और चांदी के बड़े पहाड इन सब पदार्थों के समान श्वेत था। इस हाथी के गंडस्थल से सुगन्धित मद-तरल पदार्थ निकलता रहता हैं,
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