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जिसकी सुगन्ध से आकृष्ट अलिगण-भौंरो को समुह चारों ओर घूम रहा है ऐसा इसके गाल का प्रारंभ भाग है, यह हाथी देवेन्द्रों के हाथिओं याने ऐरावण हाथी जैसा हैं, तथा जल से परिपूर्ण भरे हुए बादलों की गर्जना जैसा गंभीर तथा मनोहर इस हाथी की चिंगाड़ है, यह हाथी शुभकारी तथा सभी शुभ लक्षणों वाला है, इस हाथी की जंधा उत्तम है ऐसा हाथी त्रिशलादेवी ने प्रथम स्वपने में देखा। (१)
३५) उसके बाद श्वेत कमल की पखंडियों के ढेर से भी अधिक रुप प्रभाववाला, कान्ति के समुह को चारों दिशाओं में फैलाने के कारण चारों तरफ प्रकाशमान करनेवाला जिसका कंधा मानो अतिशय शोभा के कारण झुक रहा है वैसा, कान्तीवाले मनोहर कन्धावाला, जिसकी रोमराय बहुत पतली-स्वच्छ और कोमल है और उस प्रकार की रोमराय से जिसकी कान्ति चकचकित होती है ऐसा, स्थिर अंगवाला, मांस पेसियों से गठित शरीर है जिसका तथा सुघटित सुन्दर अंगवाला, जिसके सींग बराबर गोल घेरा वाले है ऐसा, अन्य बैलों से विशेषताओ वाला, उत्कृष्ट, तीखे (पैने) और तेल से चुपड़ें हुए ऐसे उत्तम सिंग वाला दिखने में भयकारी फिर भी किसी भी प्रकार का उपद्रव नहीं करने वाला, समान श्वेत शोभित सुन्दर दन्त पंक्तियोंवाला, अगणित गुणवाला, मंगलमय मुंहवाला ऐसे वृषभ को त्रिशला देवी दूसरे स्वपन में देखती है -२--
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