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पर अंजली करके इस प्रकार कहने लगा:
१६) अरहंत भगवन्त को नमस्कार हो, 1 तीर्थ को प्रारंभ व
प्रारंभ करने वाले ऐसे तीर्थंकरो को, अपने आप बोध पाने 2 वाले स्वयंसंबुद्धोंको, 2 पुरुषों मे उत्तम और पुरुषों मे सिंहसमान, पुरुषों में उत्तम कमल समान और पुरुषों में उत्तम - गंध हरित जैसे, 3 सर्वलोक में उत्तम, सबलोक के नाथ, सबलोक का भला करनेवाले, सर्वलोक में दीपक जैसे, सब लोकमें प्रकाश फैलाने वाले, 4 अज्ञान से अंधबने हुए लोको को आंख समान शास्त्र की रचना करनेवाले, ऐसे ही लोगों को मार्ग बतानेवाले, शरण देनेवाले ओर जीवन देनेवाले याने कभी मरना न पडे ऐसा जीवन को - (मुक्ति को) देनेवाले तथा
बोधिबीजको- (समकित को देनेवाले, धर्म को देनेवाले, धर्म का उपदेश करनेवाले, धर्म के नेता, धर्मरूप रथ को चलानेवाले सारथी जैसे, और चतुर्गतिरुप संसार का अन्त करनेवाले, उत्तम चक्रवर्ती, 6 कई भी रुकावट न आवे ऐसे उत्तम ज्ञान दर्शन को प्राप्त किये हुए, घातकर्मों को बिल्कुल दूर कर दिये है ऐसे, 7 जिन याने रागद्वेष रूपी
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