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द्वितीय जम्बूद्वीप पं० गोपीलाल अमर शास्त्री, एम. ए.
प्रारम्भिक :
एक विहङ्गम दृष्टिपात उपयोगी होगा जिसके प्रग के रूप जम्बदीप की मान्यता भारतीय लोकविद्या में व्यापक में यह द्वीप विद्यमान है। रूप से प्राप्त होती है। वैदिक' और बौद्ध' मान्यता में
में लोकरचना : एक विहगम दृष्टि :जम्बूद्वीप नाम का एक-एक ही द्वीप है जबकि जैन मान्यता
त्रिलोकी का प्राकार ऐसे पुरुष की आकृति से मिलतामें दो जम्बूद्वीप उपलब्ध होते है। ऐसा नहीं कि एक ही
जुलता है जो दोनों पैर फैलाकर और दोनो हाथ कमर द्वीप के दो भाग करके उन्हें दो द्वीप मान लिया गया हो।
पर रखकर खड़ा हो । इसके मध्य के एक लाख योजन बल्कि इस नाम के दो पृथक-पृथक द्वीप ही, जैन मान्यता
मे मध्यलोक है, जिसके नीचे नरक लोक और ऊपर स्वर्गके अनुसार विद्यमान है। जम्बूद्वीप से आगे सख्यात् समुद्रों
लोक की रचना है। मध्यलोक की पूर्व-पश्चिम लम्बाई और द्वीपों के पश्चात् अतिशय रमणीय दूसरा जम्बूदीप
और उत्तर-दक्षिण चौड़ाई एक-एक राजू और ऊंचाई है । इसका वर्णन करने से पूर्व तीन-लोक की रचना पर
एक लाख योजन" है। १. जम्बूद्वीप के विस्तृत और तुलनात्मक अध्ययन के लिए
मध्यलोक मे, बीचो-बीच, एक योजन लम्बा और देखिए : डॉ० सैयद मोहम्मद अली 'दि जॉग्रफी ऑफ
उतना ही चौडा एक मण्डलाकार महाद्वीप विद्यमान है। दि पुराणस' । २. देखिए वसुबन्धु 'अभिधर्म कोश' तथा अन्य ग्रन्थ । ८. त्रिलोकी के प्रकार की यह मान्यता भारतीय लोक४. देखिए 'जम्बूद्वीपण्णत्ती' प्रादि ग्रथ ।
विद्या मे सर्वथा अनूठी है। इसका प्रतीकार्थ तो अभी ५. एक ही नाम के दो या दो से अधिक द्वीप और भी शोषक विषय है लेकिन ऐसा प्रतीत होता है कि
बहुत से है, यद्यपि उनके नाम नही दिये गये है। हमारे पूर्वाचार्यों ने देवों और नारकियो के प्राकार(एक्कणाम वहुबाण)
प्रकार को ही दृष्टिगत रखा होगा। ६. देखिए, 'तिलोयपण्णत्ती', ५, २७
दूरी के नाप की एक अलौकिक इकाई-उतनी दूरी 'जबूदीवाहितो संखेज्जाणि पयोधिदीवाणि ।
जिसे पुद्गल का एक स्वतत्र परमाणु अपनी पूरी गंतूण पत्थि अण्णो जबुदीनो परमरम्मो ।'
रफ्तार से चलकर समय के सूक्ष्मतम भाग में ही पार 'तिलोयपण्णत्ती ५, १७६
कर ले । 'राजू' शब्द का सस्कृत रूप है 'रज्जु' 'तिलोयपण्णत्ती' (महाधिकार ५, गाथा १८६-२३७) जिसका अर्थ होता है रस्सी और जिसे बुन्देलखण्ड में में इसका वर्णन सविस्तार पाया है । 'हरिवंश पुराण' पगहिया (सस्कृत मे 'प्रग्रहिका') कहते है । बहुत से (माणिकचन्द्र, प्रथमाला) मे द्वितीय जम्बूद्वीप का स्थानों पर पगहिया को आज भी दूरी नापने की उल्लेख केवल एक श्लोक (सर्ग ५ श्लोक १६६) में एक इकाई माना जाता है। ही कर दिया गया है। हाँ, इस पुराण में प्रथम १०. यह महायोजन है जो हजार कोश के बराबर होता जम्बूद्वीप के वर्णन में ही सुदर्शन मेरू की चारों
है। साधारणत: एक योजन चार कोश के बराबर दिशामों में स्थित नगरियों (जगती) का जो वर्णन है माना जाता है। वह द्वितीय जम्बू के (तिलोयपण्णत्तीगत) वर्णन से ११. 'तन्मध्ये मेरुनाभिवृत्तो योजनशतसहस्रविष्कम्भोपूर्णत मिलता-जुलता है।
जम्बूद्वीपः ।' 'तत्त्वार्थसूत्र ३, ६