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अध्याय २
१२० अहिंसा के फलितार्थ; अहिंसा की मर्यादा : आत्म-रक्षा; अहिंसा का उद्देश्य; राग और द्वेष; तत्त्व : दो रूप; अनुकम्पा : दो रूप; अहिंसा और दया; अहिंसा और दया के उद्गम स्रोत; अहिंसा और दया की एकात्मकता; आत्म-दया और लौकिक दया।
अध्याय ३
१४८ प्रेय और श्रेय का विवेक; बन्धन और बन्धन-मुक्ति का विवेक; उठो और उठाओ-जागो और जगाओ; जैन-परम्परा के आरोह-अवरोह; जैन-धर्म का आधार; विचार-परिवर्तन ।
अध्याय ४
जैन-दर्शन की समग्र दृष्टि और हिंसा-अहिंसा; हिंसा और अहिंसा का विवेक; पुण्य और धर्म का स्वरूप-भेद; सकषाय जीवन : एक और अखण्ड।
अध्याय ५
दान-मीमांसा; सुपात्र-कुपात्र; पात्र-कुपात्र-विचार; पुरानी परम्परा; धर्माधर्म के निर्णय की कसौटी विरति है, वेश नहीं; दस प्रकार के दान।
तृतीय खण्ड
अध्याय १
१८३ अहिंसा की कुछ अपेक्षाएं; अन्याय का प्रतिकार; अध्यात्म के विचारबिन्दु; निष्क्रिय अहिंसा का उपयोग; अहिंसा का समग्र रूप; स्वास्थ्यसाधना; अहिंसा का विवेक; खाद्य-विवेक; अन्तर्मुखी दृष्टि; विकारपरिहार की साधना; विवेक-दर्शन; आत्म-दर्शन; बहिर्व्यापार-वर्जन।
२०४
अध्याय २
हृदय-परिवर्तन की समस्या।
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