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भगवती - ३१/-/१/१००३
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हैं ? इनका उपपात भी व्युत्क्रान्तिपद अनुसार जानना । भगवन् ! वे जीव एक समय में कितने उत्पन्न होते हैं ? गौतम ! वे एक समय में तीन, सात, ग्यारह, पन्द्रह, संख्यात या असंख्यात उत्पन्न होते हैं । शेष सभी कृतयुग्म नैरयिक समान जानना । इसी प्रकार अधः सप्तमपृथ्वी तक समझना ।
भगवन् ! क्षुद्रद्वापरयुग्म-राशिप्रमाण नैरयिक कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं ? गौतम ! क्षुद्रकृतयुग्मराशि के अनुसार जानना । किन्तु ये परिमाण में दो, छह, दस, चौदह, संख्यात या असंख्यात उत्पन्न होते हैं । शेष पूर्ववत् अधः सप्तमपृथ्वी पर्यन्त जानना । भगवन् ! क्षुद्रकल्योज - राशिप्रमाण नैरयिक कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं ? गौतम ! क्षुद्रकृतयुग्मराशि के अनुसार जानना । किन्तु ये परिमाण में एक, पांच, नौ, तेरह, संख्यात या असंख्यात उत्पन्न होते हैं । शेष पूर्ववत् । इसी प्रकार अधः सप्तमपृथ्वी पर्यन्त जानना । 'हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है । भगवन् ! यह इसी प्रकार है', यों कह कर गौतमस्वामी यावत् विचरते हैं । शतक - ३१ उद्देशक - २
[१००४] भगवन् ! क्षुद्रकृतयुग्म -राशिप्रमाण कृष्णलेश्यी नैरयिक कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं ? गौतम ! औधिकगम अनुसार समझना यावत् वे परप्रयोग से उत्पन्न नहीं होते । विशेष यह है कि धूमप्रभापृथ्वी के नैरयिकों का उपपात व्युत्क्रान्तिपद अनुसार कहना । शेष पूर्ववत् । भगवन् ! धूमप्रभापृथ्वी के क्षुद्रकृतयुग्म-राशिप्रमाण कृष्णलेश्यी नैरयिक कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं ? गौतम ! पूर्ववत् जानना । इसी प्रकार तमः प्रभा और अधः सप्तमपृथ्वी पर्यन्त कहना चाहिए । किन्तु उपपात सर्वत्र व्युत्क्रान्तिपद अनुसार जानना ।
भगवन् ! क्षुद्रत्र्योज-राशिप्रमाण (धूमप्रभापृथ्वी के) कृष्णलेश्यी नैरयिक कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं ? गौतम ! पूर्ववत् ! विशेष यह है कि ये तीन, सात, ग्यारह, पन्द्रह, संख्यात या असंख्यात उत्पन्न होते हैं । शेष पूर्ववत् । इसी प्रकार यावत् अधः सप्तमपृथ्वी तक जानना । भगवन् ! कृष्णलेश्यी क्षुद्रद्वापरयुग्म - राशिप्रमाण नैरयिक कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं ? गौतम ! इसी प्रकार समझना । किन्तु दो, छह, दस या चौदह, संख्यात या असंख्यात उत्पन्न होते हैं । शेष पूर्ववत् । इसी प्रकार धूमप्रभा से अधः सप्तमपृथ्वी पर्यन्त जानना । भगवन् ! क्षुद्रकल्यो - राशिपरिमाण कृष्णलेश्या वाले नैरयिक कहां से आकर उत्पन्न होते हैं ? गौतम ! पूर्ववत् । किन्तु परिमाण में वे एक, पांच, नौ, तेरह, संख्यात या असंख्यात उत्पन्न होते है । शेष पूर्ववत् । इसी प्रकार धूमप्रभा तमः प्रभा और अधः सप्तमपृथ्वी पर्यन्त समझना । 'हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है ।
शतक - ३१ उद्देशक- ३
[१००५] भगवन् ! क्षुद्रकृतयुग्म- राशि - प्रमाण नीललेश्यी नैरयिक कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं ? गौतम ! कृष्णलेश्यी क्षुदकृतयुग्म नैरयिक के समान । किन्तु इनका उपपात बालुकाप्रभापृथ्वी के समान है । शेष पूर्ववत् । भगवन् ! नीललेश्या वाले क्षुद्रकृतयुग्मराशिप्रमाण बालुकाप्रभापृथ्वी के नैरयिक कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं ? गौतम ! पूर्ववत् । इसी प्रकार पंकप्रभा और धूमप्रभा वाले में समझना । इसी प्रकार चारों युग्मों के विषय में