Book Title: Agam 40 Mool 01 Aavashyak Sutra Part 01
Author(s): Bhadrabahuswami, Kusumpragya Shramani
Publisher: Jain Vishva Bharati
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भूमिका ३. निर्गम-उत्पत्ति के मूल स्रोत की खोज करना, जैसे सामायिक का निर्गम महावीर से हुआ। ४. क्षेत्र-महासेनवन नामक उद्यान में सामायिक की उत्पत्ति हुई। ५. काल-सम्यक्त्वसामायिक और श्रुतसामायिक की प्रतिपत्ति सुषम-सुषमा, सुषमा आदि छहों कालखंडों __ में होती है। देशविरतिसामायिक व सर्वविरतिसामायिक की प्रतिपत्ति उत्सर्पिणी के दुःषम-सुषमा
और सुषम-दुःषमा तथा अवसर्पिणी के सुषम-दुःषमा, दुःषम-सुषमा और दुःषमा इन कालखंडों
में होती है। ६. पुरुष-व्यवहार दृष्टि में सामायिक का प्रतिपादन तीर्थंकर और गणधरों ने किया। निश्चय नय के
__ अनुसार सामायिक का कर्ता है-सामायिक का विधिवत् अनुष्ठान करने वाला व्यक्ति । ७. कारण–तीर्थंकर नामगोत्र कर्म का वेदन करने के लिए तीर्थंकर सामायिक अध्ययन की प्ररूपणा
करते हैं। गौतम आदि ग्यारह गणधर ज्ञानवृद्धि के लिए तथा सुंदर और मंगल भावों की
उपलब्धि के लिए सामायिक का श्रवण करते हैं। ८. प्रत्यय- 'मैं केवलज्ञानी हूं' इस प्रत्यय से अर्हत् सामायिक का कथन करते हैं। सुनने वालों को यह
प्रत्यय होता है कि 'ये सर्वज्ञ हैं इसलिए वे सुनते हैं। ९. लक्षण
. सम्यक्त्वसामायिक का लक्षण है-तत्त्वश्रद्धा। . श्रुतसामायिक का लक्षण है-जीव आदि का परिज्ञान।
. चारित्रसामायिक का लक्षण है-सावद्ययोग से विरति।" १०. नय-विभिन्न नयों के अनुसार सामायिक क्या है?
• नैगम नय के अनुसार सामायिक अध्ययन के लिए उद्दिष्ट शिष्य यदि वर्तमान में सामायिक का
अध्ययन नहीं कर रहा है, तब भी वह सामायिक है। • संग्रह नय और व्यवहार नय के अनुसार सामायिक अध्ययन को पढ़ने के लिए गुरु के चरणों
में आसीन शिष्य सामायिक है। • ऋजुसूत्र के अनुसार अनुयोगपूर्वक सामायिक अध्ययन को पढ़ने वाला शिष्य सामायिक है। • शब्द आदि तीनों नयों के अनुसार शब्दक्रिया से रहित सामायिक में उपयुक्त शिष्य सामायिक है
क्योंकि इनके अनुसार विशुद्ध परिणाम ही सामायिक है। ११. समवतार–किस सामायिक का समवतार किस करण में होता है?
• द्रव्यार्थिक नय के अनुसार गुणप्रतिपन्न जीव सामायिक है अत: उसका समवतार द्रव्यकरण में होता है। पर्यायार्थिक नय की दृष्टि से सम्यक्त्वसामायिक, श्रुतसामायिक, देशविरतिसामायिक और सर्वविरतिसामायिक जीव के गुण हैं अतः इनका समवतार भावकरण में होता है। भावकरण
१. आवनि. ४४७। २. आवनि. ५१४, महेटी पृ. ५३९ । ३. विभा ३३८२, महेटी पृ. ६४४ । ४. आवनि ४५५।
५. आवनि ४५८। ६. आवनि. ४६३। ७. विभामहेटी पृ. ३१९। ८. विभा ३३९१-३३९४, महेटी पृ. ६४६ ।
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