Book Title: Agam 11 Ang 11 Vipak Sutra Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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विपाकचन्द्रिका टीका, श्रु० १, अ० १, जम्बूस्वामिवर्णनम् . तस्याः स्वरूपस्य प्रादुर्भावे तु उत्पन्नश्रद्ध इति भावः । एवम् 'उप्पन्नसंसए, उत्पन्नकोउहल्ले'-उत्पन्नसंशयः, उत्पन्नकुतूहलः इति । 'संजायसड्ढे, संजायसंसए, संजायकोउहल्ले-संजातश्रद्धः, संजातसंशयः, संजातकुतूहलः। अत्र 'स' शब्द: प्रकर्षविशेषादिवाचकः, तेन सविशेषेण भिन्नभिन्नवस्तुस्वरूपनिर्णयेच्छारूपेण पदों के समानार्थक जैसे प्रतीत होते हैं, परन्तु सूक्ष्मदृष्टि से विचार करने पर इनके अर्थ में भेद है, और वह इस प्रकार से है-"जातश्रद्धः, जातसंशयः, जातकुतूहलः" इन पदों द्वारा श्रद्धा आदि की जो उनमें जागृति प्रकट की है, वह केवल सामान्यरूपसे ही की गई समझनी चाहिये। 'उत्पन्नश्रद्धः' इत्यादि पदों द्वारा उनमें श्रद्धा, संशय
और कुतूहल की उत्पत्ति विशेषरूपसे प्रकट की जा रही है। श्रद्धातत्त्वों के निर्णयविषयक वाञ्छा जब अपने स्वरूप से अप्रकट अवस्था में रहती है तब वह सामान्यरूपसे उत्पन्न हुई कही जाती है। इसी प्रकार संशय और कुतूहल के 'जात' और 'उत्पन्न' विशेषणों में भी यही सामान्य और विशेष धर्म की अपेक्षासे समाधान जान लेना चाहिये । सामान्यरूपसे उत्पन्न हुई श्रद्धा जब विशेषरूपसे प्रकट होती है, तब वहांपर "उत्पन्नश्रद्धः" इस पद की सार्थकता समझनी चाहिये । इसी प्रकार 'संजातश्रद्धः, संजातसंशयः, संजातकुतूहलः' इन पदों में जो "सं" यह शब्द है वह पूर्वकथित विशेष की अपेक्षा
पूर्वरित मा 'जातश्रद्धः, जातसंशयः, जातकुतूहल:' पहोना समान अर्थना सूयवનાર જેવા દેખાય છે, પરંતુ સૂમદષ્ટિથી વિચાર કરતાં તેના અર્થમાં ભિન્નતા છે, અને ते मा प्रमाणे छ- 'जातश्रद्धः, जातसंशयः, जातकुतूहलः,' से पह! द्वारा श्रद्धा આદિની તેમનામાં જાગૃતિ પ્રકટ કરી છે. તે કેવલ સામાન્યરૂપથીજ કરી છે એમ समन्वु नये. 'उत्पन्नश्रद्धः' त्या पहो द्वारा तेमनाम श्रद्धा, संशय, मने. કુતૂડલની ઉત્પત્તિ, વિશેષરૂપથી કરવામાં આવી છે. શ્રદ્ધાતત્ત્વના નિર્ણયવિષયક ઈચ્છા જ્યારે પિતાના સ્વરૂપથી અપ્રકટ અવસ્થામાં રહે છે, ત્યારે તે સામાન્યરૂપથી ઉત્પન્ન थयेटी उपाय छ, ये प्रमाणे संशय भने तूना 'जात' मने 'उत्पन्न' से વિશેષાણેમાં પણ એ સામાન્ય અને વિશેષ ધર્મની અપેક્ષાથી સમાધાન જાણી લેવું જોઈએ. સામાન્યરૂપથી ઉત્પન્ન થયેલી શ્રદ્ધા જ્યારે વિશેષરૂપમાં પ્રકટ થાય છે ત્યારે त्यां भाग उत्पन्नश्रद्धः' मे पहनी सार्थ ४11 सभी नये. मे प्रमाणे 'संजातश्रद्धः, संजातसंशयः, संजातकतहल' से पट्टोमा 'सं' से शद छ ते પૂર્વકથિત વિશેષની અપેક્ષાએ પણ અધિક વિશેષ આદિ અર્થનો ઘાતક છે. તે પદ શ્રદ્ધા,
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શ્રી વિપાક સૂત્ર