Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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42पष्टमांग ज्ञाताधर्मकथा का प्रथम श्रुतस्कन्ध 48
एयम सोच्चा णिसम्म हट्टतट्ठ जाव हियए धाराहयणीव सुरभि कुतुमचंचुमालइय. तणू ऊसवियरामकूवे, तेभुमिणं उगिण्हइ २ इहं अणुपविसई अण्पणोमाभावि. एणं मइपुब्बएगं बुद्धि विण्णाणेणं तस्स सुमिगसत्थोग्गहं करेइ २धारणीदेशयं ताहिं जाव हिययपल्हायाणिजाहिं मिउमहुर गंभीर ससिरियाहि वणू, अणुव्हमाणे एवं क्यासि ओरालाणं तुमे देवाणुप्पिए!सुमिणादिवा, कहाणाणं तुमे देवाणुप्पिए ! मिणादिट्ठा, धण्णे मंगले-सस्तिरिएण-तुम देवाणुप्पिए सुमिणादिला; आरोग्ग-तुहि-दीहाउ-कल्लाणं. मंगल कारगाणं तुमे देवी सुमिणादिट्टा अस्थलोभो देवाणुप्पिए! पुत्तलाभो देवाणुप्पिए! नो पेघकी धारा से कदम्ब वृक्ष के पुष्प विकसित होते हैं वैसे ही उसके शरीर में रोमराई विकसित हुई. और उस स्वप्न को ग्रहण करके बुद्धिसे सज का विचार कीया, अपनी साभाविक पूर्वगति से व बुद्धि विज्ञान से उस सर का अर्थ ग्रहण करके धारणी देवी की चैने यावत् आनंदकारी प्रह्लादकारी मृदु मधुर गंमार व सश्रिक ऐनी वाणी से ऐसा कहने लगे अहो देवानुप्रिये !
तुमने आरोग्य सम देखा है, तुमने कल्याणकारी स्वप्न देखा है, धन्य, मंगल व सश्रिक to स्वप्न तुमने देखा है, आरोग्य, तुष्ट, दयुष्यवाला, कल्याणकारी, व मंगल करनेवाला -स्वज तुमने देखा
है. अहो देवानुप्रिय! इस से तुम को अर्थधन)लाभ, पुत्र लाभ,राज्य लाभ,भांग लाभ व सुख लाभ होगा.
अवार्थ
गत्क्ष ( मेघकुमार) का प्रथम अध्ययन 48862
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