Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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__ ज्ञाताधर्म कथाजसूत्रे नीचमल्पप्रदानेन, समं तुल्यपराक्रमैः।।१।।” इति, अन्यच्च-"लुब्धमर्थेन गृह्णीयात्, साधुमजलिकर्मणा । मूर्ख छन्दानुरोधेन, तत्त्वार्थेन च पण्डितम् ।।" इति। 'ईहावोह मगणगवेसण अस्थसत्थमइविसारए' ईहाऽपोहमार्गणगवेषणार्थशास्त्रमतिविशारदःतत्र ईहा कस्यापिवस्तुनोऽनालोचितविलोकनजन्यसंशयनिराशाय बुद्धिचेष्टा, यथा दूरत उच्चस्त्वयुक्तस्य कस्यचिद्दर्शने 'स्थाणु र्वा पुरुषो वा इति विवेकाय बुद्धिचेष्टनम् । वश में करना होवे तो उसके साथ नम्रता का व्यवहार रखना चाहिये। (शरं भेदेन योजयेत) किसी शूरवीर को यदि वश में करना है तो उसके साथ भेदनीति का प्रयोग करना चाहिये। (नीचमल्पप्रदानेन) यदि किसी नीचजन को वश में करना है, तो उसे कुछ न कुछ थोडा बहुत अवश्य दे देना चाहिये।
(समं तुल्यपराक्रमैः) बराबरी वाले शत्रु को यदि वश में करना है तो उसके तो उसके साथ बराबरी का पराक्रम करना चाहिये। यही बात अन्यत्र इस प्रकार से गई है
'लब्धमर्थन गृह्णीयात् साधुमञ्जलि,कर्मणा, "मूर्ख छन्दानुरोधेन तत्त्वार्थेन च पण्डितम्"।
सामान्य रूप से वस्तु के बाद जो उसमें संयश होता है उस संशय को दूर करने की जो एक प्रकार की बुद्धि चेष्टा होती है उसका नाम ईहा है। जैसे दूर से किसी ऊँची वस्तु का जब हमे दर्शन होता है तब यह कुछ है ऐसा सामान्य बोध होता है अब इस सामान्य बोध
के बाद फिर ऐसा जो विचार आता है कि यह स्थाणु है या पुरुष है ४२७ नन्थे 'शूरं भेदेन योजयेत्' वा२ पुरुषने ११४२३। डाय तो तेनी साथे लेहनातिनी प्रयोग ४२वो नये. 'नीचमल्पप्रदानेन' नाय भासने ११४२वो डाय तोने-थोडयाॐA Pापन. 'समं तुल्यपराक्रमैः' सभी शतिवा દુશ્મનને વશ કરવો હોય તો તેની સાથે બરાબરીનું શૂરાતન બતાવવું જોઈએ એજ વાત બીજે સ્થાને આ રીતે બતાવવામાં આવી છે
लुब्धमर्थन गृह्णीयात् साधुमजलिकर्मणा ।
मूर्ख छन्दानुरोधेन तत्त्वार्थेन च पण्डितम् ॥१॥,, સામાન્ય રૂપમાં વસ્તુના બેધ પછી જે તેમાં સંશય ઉદ્દભવે છે તેને દૂર કરવાની એક પ્રકારની બુદ્ધિનીચેષ્ટા હોય છે, તેનું નામ “ઈહા છે. દા. ત. દૂરથી કઈ ઊંચી વસ્તુનું જ્યારે દર્શન થાય છે, ત્યારે આ કંઈક છે, એવું સામાન્ય જ્ઞાન આપણને થાય છે. આ સામાન્ય જ્ઞાન પછી ફરી એમ વિચાર થાય કે આ સ્થાણું (હુ) છે કે પુરુષ છે, આનું નામ સંશય છે. આ સંશય પછી આ સ્થાણું હોવું જોઈએ અથા પુરુષ હોવો જોઈએ,
શ્રી જ્ઞાતાધર્મ કથાંગ સૂત્રઃ ૦૧