Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Nayadhammakahao Terapanth
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 21
________________ शिष्य भिक्षा का दान-पद थावच्चापुत्र द्वारा प्रव्रज्या ग्रहण-पद की अनगार चर्या - पद थावच्चापुत्र थावच्चापुत्र का जनपद विहार- पद शैलकराज पद शैलक द्वारा गृहस्थ धर्म का स्वीकरण-पद शैलक की श्रमणोपासक चर्या-पद सुदर्शन श्रेष्ठी-पद शुक परिव्राजक पद शौचमूलक धर्म-पद सुदर्शन द्वारा शौचमूलक धर्म की प्रतिपत्ति-पद धावच्यापुत्र का सुदर्शन के साथ संवाद-पद सुदर्शन द्वारा विनयमूलक धर्म की प्रतिपत्ति-पद शुक द्वारा सुदर्शन को प्रतिसंबोध प्रयत्न- पद शुक का थावच्चापुत्र के साथ संवाद - पद सरिसवय की भक्ष्याभक्ष्यता- पद कुलस्थों की भक्ष्याभक्ष्यता-पद मासों (माषों) की भक्ष्याभक्ष्यता- पद अस्तित्व-प्रश्न-पद हजार परिव्राजकों के साथ शुक का प्रव्रज्या पद शुक का जनपद विहार- पद याच्यापुत्र का परिनिर्वाण- पद शैलक का अभिनिष्क्रमण अभिप्राय-पद मंडुक का राज्याभिषेक पद शैलक का निष्क्रमण-अभिषेक-पद शैलक का प्रव्रज्या पद शैलक का अनगार-चर्या-पद शुक का परिनिर्वाण पट शैलक का रोगांतक पद शैलक का चिकित्सा पद शैलक का प्रमत्त विहार-पद साधुओं द्वारा शैलक का परित्याग-पद पन्चक द्वारा चातुर्मासिक क्षमापना पद शैलक का कोप-पद शैलक का अभ्युद्यत विहार-पद निक्षेप-पद टिप्पण Jain Education International गाथा व सूत्र सूत्र ३० - ३३ 17 11 "" 37 "" "" 39 27 "1 "" 17 "1 21 " 21 37 "" "3 " ८१-८२ १४६ ८३-८४ १४६ ८५-६१ १५० ६२-६५ १५१ ६६-६८ १५१ ££ १५२ १५२ १०२-१०५ १५२ "१०६-१०६ १५३ ११०-११६ १५३ ११७ १५४ ११८ १५४ १५५ १५५ १५५ १५५ १५८-१६० "" " 17 पृष्ठ १३८ ३४ १३६ ३५-३८ १३६ ३६-४१ १४० ४२-४४ १४० ४५-४६ १४० ४७-५० १४२ १४२ १४२ ५५ १४२ ५६-५७ १४३ ५१ ५२-५४ 23 " १००-१०१ ५८-६१ १४३ ६२-६४ १४४ (xix) ६५-६६ १४४ ७०-७२ १४५ ७३ १४६ ७४ १४७ ७५ १४८ ७६ १४८ १४६ ७७-८० ११८-१२१ १२२-१२३ " १२४-१२६ "" १३० छठा अध्ययन : तुंब उत्क्षेप-पद गुरुत्वत्व पद निक्षेप - पद सप्तम अध्ययन रोहिणी उत्क्षेप-पद धन सार्थवाह पद धन द्वारा परीक्षा प्रयोग-पद परीक्षा परिणाम पद निक्षेप-पद टिप्पण आठवां अध्ययन : मल्ली उत्क्षेप-पद बलराज पद महाबल राजा-पद महाबल आदि की प्रव्रज्या पद महाबल का तपोविषयक माया-पद संग्रहणी गाथा महाबल आदि का विविध तपश्चरण-पद समाधिमरण-पद प्रत्यागमन-पद मल्ली के रतिचर का निर्माण- पद प्रतिबुद्धिराज -पद चन्द्रच्छायराज पद रुक्मि राज पद शंखराज-पद अदीनशत्रुराज-पद जितशत्रुराज-पद दूतों द्वारा सन्देश निवेदन- पद कुम्भ द्वारा दूतों का असत्कार - पद जितशत्रु प्रमुखों का कुम्भ के साथ युद्धमल्ली द्वारा चिन्ता का कारण पृच्छा-पद कुम्भ द्वारा चिन्ता का कारण कथन-पद मल्ली द्वारा उपाय निरूपण-पद मल्ली द्वारा जितशत्रु प्रमुखों को संबोध-पद जितशत्रु प्रमुखों का जाति - स्मरण - पद मल्ली की प्रव्रज्या पद मल्ली का केवलज्ञान-पद For Private & Personal Use Only गाथा व सूत्र सूत्र "" "" 33 27 23 "" "" " " १ १७८ २-८ १७८ ६-१५ १७६ १६-१७ १८० १८० १८० १८ १ १८२ २७-३६ १८२ ४०-४२ १८४ ४३-६३ १८५ ६४-८६ १८८ "' €0-900 १६६ १०१-११३ १६७ १६६ २०३ २०६ १५६-१६० २०६ १६१-१६८ २०६ १६६-१७१ २०८ १७२ २०८ २०६ २०६ २११ २११ २२५-२२६ २१७ "" "" " " " " सूत्र १-३ " 31 x x i " ४ सूत्र १-२ "" "" ६-२१ " २२-४३ "४४ ११४- १३७ १३८ - १५६ " १५७-१५८ १६६ ३-५ १६६ १६६ १७० १७३ १७५ १८. १८ १६-२५ २६ पृष्ठ " १७३-१७४ १७५-१८० 23 १८ १ " १८२-१२४ १६२ .१६२ १६३ www.jainelibrary.org

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