________________
55555555555)))))))))))))))))))))
)))
५. लोक एक है। ६. अलोक एक है। ७. धर्मास्तिकाय एक है। ८. अधर्मास्तिकाय एक है। ९. बन्ध एक है। १०. मोक्ष एक है। ११. पुण्य एक है। १२. पाप एक है। १३. आस्रव एक है। १४. संवर एक है। १५. वेदना (कर्मफल का वेदन) एक है। १६. निर्जरा एक है।
5. Lok (occupied space) is one. 6. Alok (unoccupied space) is one. 7. Dharmastikaya (motion entity) is one. 8. Adharmastikaya (inertia entity) is one. 9. Bandh (karmic bondage) is one. 10. Moksha (liberation) is one. 11. Punya (merit) is one. 12. Paap (demerit) is one. 13. Asrava (karmic inflow) is one. 14. Samvar (blocking of inflow of karmas) is one. 15. Vedana (suffering karmic fruition) is one. 16. Nirjara (shedding of karmas) is one.
विवेचन-आकाश द्रव्य के दो भेद हैं-लोक और अलोक। जिस आकाश में धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय आदि छहों द्रव्य मिलते हैं, वह लोक है, जहाँ आकाश द्रव्य मात्र है वह अलोक है। जीव और पुद्गलों की गति में सहायक द्रव्य को धर्मास्तिकाय और उनकी स्थिति में सहायक द्रव्य को अधर्मास्तिकाय कहते हैं। योग एवं कषाय के निमित्त से आत्मा के साथ कर्म-पुद्गलों का बँधना बन्ध है और तप आदि द्वारा आत्मा से समस्त कर्मों का क्षय होना मोक्ष है।
सुख का वेदन कराने वाले सातावेदनीय कर्म को पुण्य और दुःख का वेदन कराने वाले असातावेदनीय आदि अशुभ कर्मों को पाप कहते हैं। आत्मा में कर्म-परमाणुओं के आगमन द्वार को अथवा बन्ध के कारण को आस्रव और उसके निरोध को संवर कहते हैं। स्वाभाविक रूप से, या तप आदि प्रयत्न द्वारा उदय में आये कर्मों के विपाक (फल) को अनुभव करना वेदना है। कर्मों का फल देकर आत्मा से पृथक् होना निर्जरा है।
द्रव्यास्तिकाय की अपेक्षा लोक, अलोक, धर्मास्तिकाय और अधर्मास्तिकाय एक-एक ही द्रव्य हैं तथा बन्ध, मोक्षादि शेष तत्त्व बन्धन आदि की समानता से एक-एक रूप ही हैं। अतः उन्हें एक-एक कहा गया है। विस्तार की दृष्टि से पुण्य, पाप, आस्रव, संवर आदि के अनेक भेद भी सूत्र में बताये हैं। ___Elaboration-The ontological category or entity aakash (space) is divided into two sections-lok (occupied space or the known universe) and alok (unoccupied space or the space beyond the known universe). The section of space where all the six fundamental entities including Dharmastikaya and Adharmastikaya exist is called lok (occupied space). The section where just space entity exists is called alok (unoccupied space or the space beyond the known universe). The fundamental entity associated with the movement of soul and matter is called Dharmastikaya and that associated with the rest or inertia of these is called Adharmastikaya. The fusion of karma-particles with soul caused by yoga (association of soul with mental, vocal and physical activities)
प्रथम स्थान
(9)
First Sthaan
For Private & Personal Use Only
Jain Education International
www.jainelibrary.org