Book Title: Agam 02 Ang 02 Sutrakrutang Sutra Suyagado Terapanth
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya, Dulahrajmuni
Publisher: Jain Vishva Bharati
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टिप्पण: अध्ययन १
श्लोक १: १. बोधि को प्राप्त............ तोड़ डालो (बुज्झज्ज तिउद्देज्जा)
___'आचार: प्रथमो धर्म:-यह आचार-शास्त्र का प्रसिद्ध सूत्र है, किन्तु इस सूत्र में आचार का महत्व प्रतिपादित हुआ है, उसकी पृष्ठभूमी का प्रतिपादन नहीं है। भगवान् महावीर के आचार-शास्त्र का सूत्र है-'ज्ञानं प्रथमो धर्मः'। पहले ज्ञान फिर आचार ।' ज्ञान के बिना आचार का निर्धारण नहीं हो सकता और अनुपालन भी नहीं हो सकता। ज्ञानी मनुष्य ही आचार और अनाचार का विवेक करता है तथा अनाचार को छोड़ आचार का अनुपालन करता है । 'बुज्झज्ज तिउट्टेज्जा'-इस श्लोकांश में यही सत्य प्रतिपादित हुआ है। पहले बंधन को जानो फिर उसे तोड़ो । बंधन क्या है ? उसके हेतु क्या हैं ? उसे तोड़ने के उपाय क्या हैं ? इन सबको जानने पर ही उसे तोडा जा सकता है । यह दृष्टि न केवल ज्ञानवाद है और न केवल आचारवाद है । यह दोनों का समन्वय है।
चूणिकार ने बुज्झेज्ज, उवलभेज्ज, भिदेज्ज, जहेज्ज और आगमेज्ज-इन सबको ज्ञानार्थक धातु माना है।' बोधि, उपलब्धि, भेद या विवेक, प्रहाण और आगम-ये सब ज्ञान के अर्थ में प्रयुक्त होते हैं । २. तोड़ डालो (तिउद्देज्जा) - इसका अर्थ है-तोडना । त्रोटन दो प्रकार का होता है--द्रव्य-त्रोटन और भाव-त्रोटन । द्रव्य-त्रोटन-अर्थात् किसी भी पौद्गलिक पदार्थ का टूटना । भाव-त्रोटन के तीन साधन हैं-ज्ञान, दर्शन और चरित्र । इन तीन साधनों से अज्ञान, अविरति और मिथ्यादर्शन को तोडना भाव-त्रोटन है। प्रमाद, राग-द्वेष, मोह आदि को तोडना तथा आठ प्रकार के कर्मों के बंधन को तोडना भी भाव-त्रोटन है। ३. महावीर ने (वोरे)
वृत्तिकार ने इसका अर्थ-तीर्थंकर किया है।'
चूर्णिकार ने इस शब्द के स्थान पर 'धीरे' शब्द मानकर उसका अर्थ-बुद्धि आदि गुणों को धारण करने वाला किया है। ४. बंधन किसे.........तोड़ा जा सकता है ? (किमाह बंधणं.........जाणं तिउट्टइ?)
___ जंबू ने आर्य सुधर्मा से पूछा-भगवान् महावीर की वाणी में बंधन क्या है और उसे कैसे तोड़ा जा सकता है ? इन दो प्रश्नों के उत्तर में आर्य सुधर्मा ने कहा-परिग्रह बंधन है, हिंसा बंधन है। बंधन का हेतु है-ममत्व । बंधन-मुक्ति के उपाय हैं१. दसवेआलियं, ४ श्लोक १० : पढमं गाणं तओ दया। २.णि, पृष्ठ ११: बुज्झज्ज वा उवलभेज्ज वा भिदेज्ज वा । एवमन्येऽपि ज्ञानार्था धातवो वक्तव्याः, तद् यथा-जहेज्ज वा आगमेज्ज
वा। ३. चूणि, पृष्ट २१ : तिउट्टेज प्रोडेज्ज । सा दुविधा-दव्वत्रोडणा य भावत्रोडणा य । दब्वे देसे सव्वे य । देसे एगतंतुणा एगगुणेण वा छिण्णण दोरो त्रुट्टो बुज्झति, सव्वेण वि त्रुटो त्रुटो चेव भण्णति । भावतोट्टणा भावेणैव भावो त्रोटेतव्वो, णाण-दसण-चरित्ताणि अत्रोडयित्ता तेहिं चेव करणभूतेहि अण्णाण-अविरति-मिच्छादरिसणाणि तोडितब्वाणि, जधुद्दिट्टा वा पमाताविबंधहेतु तोडेज्ज, बंधं च अट्ठ कम्मणियलाणि त्रोडेज्ज । ४. वृत्ति, पत्र १३ : वीरः तीर्थकृत् । ५. चूणि, पृष्ठ २१:धीरो इति बुद्धयादीन् गुणान् बधातीति धीरः। ६. सूयगडो १३१०२,३। ७. वही, १०१।४।
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