Book Title: Agam 02 Ang 02 Sutrakrutang Sutra Suyagado Terapanth
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya, Dulahrajmuni
Publisher: Jain Vishva Bharati
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सूयगडो १
२३८
प्र०५: नरकविभक्ति: श्लोक ६-१२ ६. हण छिदह भिदह णं दहेह हत छिन्त भिन्त दहत, ६. वे नैरयिक परमाधार्मिक देवों के 'मारो, सद्दे सुणेत्ता परधम्मियाणं। शब्दान् श्रुत्वा पराधार्मिकाणाम् । काटो, टुकड़े करो, जलाओ'-ये शब्द ते णारगा ऊ भयभिण्णसण्णा ते नारकाः तु भयभिन्नसंज्ञाः, सुन कर भय से संज्ञाहीन हो जाते हैं कंखंति कंणाम दिसं वयामो?।६।। कांक्षन्ति का नाम दिशं व्रजामः?॥ और यह आकांक्षा करते हैं कि हम
किस दिशा में जाएं ?" ७. इंगालरासि जलियं सजोइं अङ्गारराशिः ज्वलितः सज्योतिः, ७. वे जलती हुई ज्योति सहित अंगारतओवमं भूमिमणक्कमंता। तदुपमां भूमि अनुक्रामन्तः । राशि" के समान भूमि पर चलते हैं। ते डज्झमाणा कलुणं थणंति ते दह्यमानाः करुणं स्तन्ति, उसके ताप से जलते हुए वे चिल्लाअरहस्सरा तत्थ चिरट्टिईया।। ___ अरहःस्वराः तत्र चिरस्थितिकाः ॥ चिल्ला कर" करुण क्रन्दन करते हैं।"
वे चिरकाल तक" उस नरक में रहते
८. जइ ते सुया वेयरणीऽभिदुग्गा यदि ते श्रुता वैतरणी अभिदुर्गा, ८. तेज छुरे जैसी तीक्ष्ण धार वाली अतिणिसिओ जहा खुर इव तिवखसोया। निशितो यथा क्षुर इव तीक्ष्णश्रोताः । दुर्गम वैतरणी नदी" के बारे में तुमने
तरंति ते वेयरणीऽभिदुग्गं तरन्ति ते वैतरणीमभिदुर्गा, सुना होगा। वे नरयिक बाणों से बींधे उसुचोइया सत्तिसु हम्ममाणा।। इषचोदिताः शक्तिभिर्हन्यमानाः ।। और भाले से मारे जाते हुए उस
वैतरणी नदी में उतरते हैं। ६. कोलेहि विझति असाहुकम्मा कोलेहि' विध्यन्ति असाधुकर्माणः, ६. क्रूरकर्मा परमाधार्मिक देव (वैतरणी णावं ते सइविप्पहूणा। नावमुपयतः स्मृतिविप्रहीनान् ।। नदी से डर कर) नाव के पास आते अण्णे तु सूलाहि तिसूलियाहिं अन्ये तु शुलैः त्रिशूलैः, हुए उन स्मृतिशून्य" नैरयिकों की दोहाहि विभ्रूण अहे करेंति ।। दीर्धेः विद्ध्वा अधः कुर्वन्ति ।। गरदन को बींध डालते हैं। कुछ
परमाधार्मिक उन्हें लम्बे शूलों और त्रिशूलों से बींध कर नीचे भूमि पर
गिरा देते हैं। १०. केसि च बंधित्तु गले सिलाओ केषाञ्च बध्वा गले शिलाः, १०. कुछ परमाधार्मिक देव किन्हीं के गले
उदगंसि बोलेंति महालयंसि। उदके ब्रोडयन्ति महति । में शिला बांधकर उन्हें अथाह पानी में कलंबुयावालुयमुम्मुरे य कलम्बुकाबालुकामुर्मुरे च, डुबो देते हैं। (वहां से निकाल कर) लोलेंति पच्चंति य तत्थ अण्णे ।१०। लोलयन्ति पचन्ति च तत्र अन्ये ॥ तुषाग्नि को भांति (वैतरणी के) तीर
की" तपी हुई बालुका में उन्हें लोट
पोट करते हैं ओर भूनते हैं। ११. असूरियं णाम महाभितावं असूर्य नाम महाभितापं, ११. असूर्य नाम का महान् संतापकारी
अंधं तमं दुप्पतरं महंतं। अन्धंतमः दुष्प्रतरं महत् । एक नरकावास है। वहां घोर अंधकार उड्ढं अहे यं तिरियं दिसासु ऊर्ध्वमधश्च तिर्यगदिशासु, है। जिसका पार पाना कठिन हो समाहिओ जत्थगणी झियाइ।११। समाहितो यत्राग्निः धमति ॥ इतना विशाल है। वहां ऊंची, नीची
और तिरछी दिशाओं में निरंतर
आग जलती है। १२. जंसी गुहाए जलणेऽतिवट्टे यस्मिन् गुहायां ज्वलनेऽतिवृत्तः, १२. उसकी गुफा में नारकीय जीव ढकेला
अविजाणओ डज्झइ लुत्तपण्णो। अविजानन् दह्यते लुप्तप्रज्ञः । जाता है। वह प्रज्ञाशून्य नैरयिक सया य कलुणं पुण धम्मठाणं सदा च करुणं पुनर्घर्मस्थानं, निर्गम-द्वार को नहीं जानता हुआ" गाढोवणीयं अइदुक्खधम्म १२॥ गाढोपनीतमतिदुःखधर्मम्
उस अग्नि में जलने लग जाता है ।
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