Book Title: Agam 02 Ang 02 Sutrakrutang Sutra Suyagado Terapanth
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya, Dulahrajmuni
Publisher: Jain Vishva Bharati
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सूयगडो १
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अध्ययन ११ : टिप्पण १५ तीसरा वर्गीकरण'
पृथ्वी अप् अग्नि वायु तृण-वृक्ष और बीज त्रस-प्राण
तीनों वर्गीकरणों में प्रथम चार मूल नाम हैं। इनमें वनस्पति का उल्लेख नहीं है, उसके प्रकार निर्दिष्ट हैं। प्रथम दो वर्गीकरणों में त्रस का उल्लेख नहीं है, उसके प्रकार निर्दिष्ट हैं। तीसरे वर्गीकरण में बस का उल्लेख है, उसके प्रकार उल्लिखित नहीं हैं। प्रथम वर्गीकरण में बस के चार प्रकार निर्दिष्ट हैं और दूसरे वर्गीकरण में त्रस के छह प्रकार निर्दिष्ट हैं। इसमें 'पोत' और 'उद्भिज्ज' ये दो अधिक हैं । त्रस के तीनों वर्गीकरणों में सम्मूच्छिम और औपपातिक का उल्लेख नहीं है । आचारांग (१।११८) में ये दोनों मिलते हैं-'से बेमि- संतिमे तसा पाणा, तं जहा-अंडया पोयया जराउया रसया संसेयया संमुच्छिमा उब्भिया ओववाइया' । आचारांग में उपपात का प्रयोग सामान्य जन्म के अर्थ में भी मिलता है-उववायं चवणं णच्चा (३।४५), किन्तु वहां (१११८) औपपातिक का प्रयोग सामान्य जन्म के अर्थ में नहीं है।
उक्त वर्गीकरणों के आधार पर क्रम-विकास का अध्ययन नहीं किया जा सकता। ये सब प्रकरण-सापेक्ष और छंद-सापेक्ष हैं । आचारांग के गद्य (१।११८) में बस के आठ प्रकार उल्लिखित हैं और जहां पद्य में छह काय का निरूपण है वहां केवल 'तसकायं च सव्वसो' (६।१२) इतना उल्लेख मात्र है।
श्लोक ६ : १५. अनुयुक्तियों (सम्यक् हेतुओं) से (अणुजुत्तीहिं)
अनुयुक्ति का अर्थ है-अनुरूप युक्ति अर्थात् सम्यक् हेतु ।' वृत्तिकार ने इसके दो अर्थ किए हैं-अनुकूल साधन, युक्तिसंगत युक्ति ।'
प्रस्तुत श्लोक का प्रतिपाद्य है कि मतिमान् पुरुष छह जीवनिकायों के जीवत्व की संसिद्धि उनके अनुकूल युक्तियों से करे । सभी जीवों की संसिद्धि एक ही हेतु से नहीं हो सकती। उनके लिए भिन्न-भिन्न युक्तियां होती हैं। विशेषावश्यक भाष्य गाथा १७५३-१७५८ की स्वोपज्ञवृत्ति में इन युक्तियों का सुन्दर समावेश है।' वृत्तिकार ने इन युक्तियों का संक्षिप्त विवरण दिया है
१. पृथ्वी सजीव है, क्योंकि पृथ्वी रूप प्रवाल, नमक, पत्थर आदि पदार्थ अपने समान जातीय अंकुर को उत्पन्न करते हैं, जैसे
अर्श का विकार अंकुर । २. पानी सजीव है, क्योंकि भूमि को खोदने पर वह स्वाभाविक रूप से उपलब्ध होता है, जैसे दर्दुर । अन्तरिक्ष से स्वाभाविक
रूप से गिरता है, जैसे कि मत्स्य । ३. अग्नि सजीव है क्योंकि अनुकूल आहार (ईंधन) की वृद्धि से वह बढ़ती है, जैसे बालक आहार मिलने पर बढ़ता है। ४. वायु सजीव है क्योंकि बिना किसी की प्रेरणा के वह नियमत: तिरछी गति करता है, जैसे गाय ।
५. वनस्पति सजीव है, क्योंकि उसमें उत्पत्ति, विनाश, रोग, वृद्धत्व आदि होते हैं । वह रुग्ण होती है और चिकित्सा से १. सूयगडो, १११११७,८। २. चूणि, पृ० १६७ : अनुरूपा युक्तिः अनुयुक्तिः । ३. वृत्ति, पत्र २०३ : अनुरूपा-पृथिव्यादिजीवनिकायसाधनस्वेनानुकला युक्तयः----साधनानि, यदि वा.......... 'युक्तिसंगता युक्तयः
अनुयुक्तयस्ताभिरनुयुक्तिभिः । ४. चूणि, पृ० १६७ । ५. वृत्ति, पत्र २०३।
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