Book Title: Agam 02 Ang 02 Sutrakrutang Sutra Suyagado Terapanth
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya, Dulahrajmuni
Publisher: Jain Vishva Bharati
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टिप्पण: अध्ययन १२
इलोक १ :
१. श्लोक १ :
आगम-सूत्रों में विभिन्न धार्मिक वादों का चार श्रेणियों में वर्गीकरण किया गया है-क्रियावाद, अक्रियावाद, विनयवाद और अज्ञानवाद । प्रस्तुत सूत्र के १।६।२७ में भी इन चार वादों का उल्लेख मिलता है । नियुक्तिकार ने अस्ति के आधार पर क्रियावाद, नास्ति के आधार पर अक्रियावाद, अज्ञान के आधार पर अज्ञानवाद और विनय के आधार पर विनयवाद का निरूपण किया है ।" १.फियाबाद
क्रियावाद की विस्तृत व्याख्या दशाश्रु तस्कंध में मिलती है । उससे क्रियावाद के चार अर्थ फलित होते हैं—आस्तिकवाद, सम्यग्वाद, पुनर्जन्म और कर्मवाद ।' प्रस्तुत सूत्र में बतलाया है कि जो आत्मा, लोक, गति, अनागति, शाश्वत, जन्म, मरण, च्यवन, उपपात को जानता है तथा जो अधोलोक के प्राणियों के विवर्तन को जानता है, आस्रव, संवर, दुःख और निर्जरा को जानता है, वह क्रियावाद का प्रतिपादन कर सकता है। इससे क्रियावाद के चार अर्थ फलित होते हैं
१. अस्तित्ववाद - आत्मा और लोक के अस्तित्व की स्वीकृति ।
२. सम्यग्वाद - नित्य और अनित्य- दोनों धर्मों की स्वीकृति -- स्यादवाद, अनेकान्तवाद |
२. पुनर्जन्मबाद।
४.
क्रियावाद में उन सभी धर्म-वादों को सम्मिलित किया गया है जो आत्मा आदि पदार्थों के अस्तित्व में विश्वास करते थे और जो आत्मा के कर्तव्य को स्वीकार करते थे।
आचारांग सूत्र में चार वादों का उल्लेख है - आत्मवाद, लोकवाद, कर्मवाद और क्रियावाद । प्रस्तुत संदर्भ में आत्मवाद, लोकवाद और कर्मवाद का स्वतंत्र निरूपण है । इस अवस्था में क्रियावाद का अर्थ केवल आत्म-कर्तृत्ववाद ही होगा ।
नियुक्तिकार ने कियाबाद के १८० प्रवादों का उल्लेख किया है।' पूर्णिकार ने १५० क्रियावादों का विवरण प्रस्तुत किया है । किन्तु वह विकल्प की व्यवस्था जैसा लगता है । उससे धर्म-प्रवादों की विशेष जानकारी प्राप्त नहीं होती। वह विवरण इस प्रकार है— जीव, अजीव, आस्रव, बंध, पुण्य, पाप, संवर, निर्जरा और मोक्ष- ये नौ तत्त्व हैं । स्वतः और परतः की अपेक्षा इन नौ तत्त्वों के अठारह भेद हुए । इन अठारह भेदों के नित्य, अनित्य की अपेक्षा से छत्तीस भेद हुए । इनमें से प्रत्येक के काल, नियति, स्वभाव, ईश्वर, आत्मा आदि कारणों की अपेक्षा पांच-पांच भेद करने पर (३६x५) १८० भेद हुए । इसकी चारणा इस प्रकार है- जीव स्वरूप से काल, नियति, स्वभाव, ईश्वर और आत्मा की अपेक्षा नित्य है । ये नित्य पद के पांच भेद हुए । इसी प्रकार अनित्यपद के पांच भेद हुए | ये दस भेद जीव के स्व-रूप से नित्य- अनित्य की अपेक्षा से हुए । इसी प्रकार दस भेद जीव के पर रूप से नित्य - अनित्य की १. सूत्रकृतांग निर्युक्ति, गाथा १११ : अस्थि त्ति किरियावादी, वयंति णत्थि त्ति अकिरियवादी य ।
अण्णाणी
अण्णार्थ, विणइत्ता वेणइयवादी ॥
२. दशस्कंध, दशा ६ सूत्र ७ किरियाबादी यानि भवति तं जहाहियवादी आहियपणे आहिवदिट्ठी सम्मावादी गोपावादी संतरोगवादी अपि इहलोगे अस्थि परलो सुचिया कम्मा सुचिणकता भवंति दुचिणा कम्मा दुचिणफला भवंति
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३. सूयगडो, १।१२।२०,२१ ।
४. आधारो, १५ : से आयाबाई, लोगावाई, कम्माबाई, किरियाबाई ।
५. सूत्रकृतांग निर्युक्ति, गाथा ११२ : असियसयं किरियाणं, अक्किरियाणं च होति चुलसोती ।
अण्णाणिय
सत्तट्ठी, वेणइयाणं च बत्तीसा ॥
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