Book Title: Agam 02 Ang 02 Sutrakrutang Sutra Suyagado Terapanth
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya, Dulahrajmuni
Publisher: Jain Vishva Bharati
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सूयगडो १
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प्रध्ययन १६ : टिप्पण ३८-४० ३८. धर्म का विद् (धम्मविऊ)
जो धर्म के सब प्रकारों को जानता है वह धर्मविद् कहलाता है।'
जो धर्म के सभी पहलुओं को और उसके फल को जानता है वह धर्मविद् कहलाता है।' ३९. मोक्षमार्ग के प्रति समर्पित (णियागपडिवण्णे)
इसका अर्थ है-मोक्ष के लिए समर्पित ।
चूर्णिकार ने 'नियाग' का अर्थ चारित्र' और वृत्तिकार ने मोक्षमार्ग अथवा सत्संयम किया है।' ४०. सम्यक् चर्या करने वाला (समियं चरे) इसके दो अर्थ हैं-(१) सम्यक् चर्या करने वाला।
(२) सतत समभाव में रहने वाला।
१. चूणि, पृ० २४८ : धम्मविद् ति सर्वधर्माभिज्ञः। २. वृत्ति, पत्न २७४ : धर्म यथावत्तत्फलानि च स्वर्गावाप्तिलक्षणानि सम्यक् वेत्ति । ३. धूणि, पृ० २४८ : नियागं णाम चरितं तं पडिवण्णो। ४. वृत्ति, पत्र २७४ : नियागो-मोक्षमार्गः सत्संयमो वा तं सर्वात्मना भावतः प्रतिपन्न: नियागपडिवन्ने ति। ५. चूणि, पृ० २४८ : समियं चरे सम्यक् चरेत् । ६. वृत्ति, पत्र २७४ : समियं ति समतां समभावरूपा वासीचन्दनकल्पां 'चरेत्'-सततमनुतिष्ठेत् ।
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