Book Title: Agam 02 Ang 02 Sutrakrutang Sutra Suyagado Terapanth
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya, Dulahrajmuni
Publisher: Jain Vishva Bharati
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सूयगडो १
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अध्ययन १४ : प्रामुख
जैन मुनि भौतिक अभ्युत्थान का वाचक आशीर्वाद न दे। वह आध्यात्मिक अभ्युदय के लिए आशीर्वाद या निर्देश दे । कुछ विद्वान् इसका अर्थ-अ-स्याद्वाद करते हैं, जो सही नहीं है । विभज्जवायं (श्लोक २२)
बावीसवें श्लोक में 'विभज्जवायं च वियागरेज्जा' ऐसा निर्देश है। इसका अर्थ है- मनि विभज्यवाद के आधार पर वचनप्रयोग करे।
चूर्णिकार ने इसके दो अर्थ किए हैं- भजनीयवाद और अनेकान्तवाद । वृत्ति के अनुसार इसके तीन अर्थ हैं१. पृथक्-पृथक् अर्थों का निर्णय करने वाला वाद । २. स्याद्वाद। ३. अर्थों का सम्यग विभाजन करने वाला वाद ।
बौद्ध साहित्य में विभज्यवाद की अनेक स्थलों पर चर्चा प्राप्त होती है। उसका स्वरूप-निर्णय भी वहां से होता है। बुद्ध ने स्वयं को विभज्यवाद का निरूपक कहा है।
विशेष विवरण के लिए देखें-टिप्पण संख्या ८१ ।
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