Book Title: Agam 02 Ang 02 Sutrakrutang Sutra Suyagado Terapanth
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya, Dulahrajmuni
Publisher: Jain Vishva Bharati
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अध्ययन १२ : श्रामुख
सूयगडो १
अष्टांग निमित्त का अध्ययन करने वाले सभी समान ज्ञानी नहीं होते। उनमें अनन्त तारतम्य होता है । यह तारतम्य अपनीअपनी क्षमता पर आधारित है ।
निमित्त जिस घटना की सूचना देता है, परिस्थिति बदल जाने पर वह घटना अन्यथा भी हो जाती है। इस दृष्टि से लोग उसे अयथार्थ मान लेते हैं ।
चूर्णिकार ने अनेक उदाहरणों से इसे समझाया है ।"
तेरहवें श्लोक में देवों का वर्गीकरण प्रचलित वर्गीकरण से भिन्न काल का प्रतीत होता है। यह श्लोक ऐतिहासिक दृष्टि से विमर्शनीय है।'
सूत्रकार ने प्रस्तुत अध्ययन के उपसंहार में बतलाया है कि बहुत सारे दर्शन स्वयं को क्रियावादी घोषित करते हैं, किन्तु घोषणा मात्र से कोई क्रियावादी नहीं हो जाता। क्रियावादी वह होता है जो क्रियावाद के आधारभूत सिद्धान्तों को मानता है । वे ये हैं
१. आत्मा है ।
२. लोक है ।
३. आगति और अनागति है ।
४. शाश्वत और अशाश्वत है ।
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५. जन्म और मरण है । ६. उपपात और च्यवन है ।
१. देखें - टिप्पण संख्या १५, १६ । २. देखें-- टिप्पण संख्या २४ ।
३. सूयगडो, १२०२०,२१ ॥
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७. अधोगमन है ।
८. आस्रव और संवर है ६. दुःख और निर्जरा है ।
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