Book Title: Agam 02 Ang 02 Sutrakrutang Sutra Suyagado Terapanth
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya, Dulahrajmuni
Publisher: Jain Vishva Bharati
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मूल
१. चत्तारि समोसरणाणिमाणि पावाया जाई पुढो वति । किरि अकिरियं विषयं ति तइयं अण्णाणमाहंसु चत्वमेव ॥
२. अण्णाणिया ता कुराला वि संता असंथुया णो वितिगिच्छ तिष्णा । अकोविया आह अकोविएहि अणाणुवीईति मुसं वदंति ॥
३. सच्चं असच्चं इति चितयंता असाहु साहु त्ति उदाहरंता । जेमे जणा बेणइया अणेगे पुट्ठा वि भावं विनईसु णाम ।
४. अणोवसंखा इति ते उदाहु अट्ठे स ओभासद अम्ह एवं वावसपकी व अणागए ह णो किरियमाहंसु अकिरियआया ॥
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बारसमं श्रज्झयणं : बारहवां अध्ययन समोसरणं : समवसरण
संस्कृत छाया
चत्वारि समवसरणानि इमान, प्रावादुका : यानि पृथग् वदन्ति । क्रियां अक्रियां विनयमिति तृतीयं, अज्ञानमाहः
चतुर्थमेव ॥
अज्ञानिकाः तावत् कुशला अपि सन्तः, असंस्तुताः नो विचिकित्सां तीर्णाः । अकोविदाः आहुः अकोविदेषु, अननुवीचि इति मृषा वदन्ति ।।
सत्यं असत्यं इति चिन्तयन्तः, असाधु साधु इति उदाहरन्तः । ये इमे जनाः वैनायिकाः अनेके, पृष्टा अपि भावं व्यनैषुर्नाम ॥
॥
अनुपसंख्यया इति ते उदाहुः अर्थ एष अवभाषते अस्माकं एवम् लवावण्यस्की अनागतेषु, नो क्रियामाहुः अक्रियात्मानः ॥
च
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हिन्दी अनुवाद
१. ये चार समवसरण (वाद - संगम) हैं । प्रावादुक' (अपने-अपने मत के प्रवक्ता ) भिन्न-भिन्न प्रतिपादन करते हैंक्रिया, क्रिया, तीसरा विनय और और चौथा अज्ञान ।
२. अज्ञानवादी कुशल होते हुए भी सम्मत नहीं हैं । वे संशय का पार नहीं पा सके हैं। वे स्वयं 'कौन जानता है?' (को बेति कोविद) इस प्रकार का संशय करते हैं और इस प्रकार संशय करने वालों (कोविदों) में ही अपनी बात रखते हैं वे पूर्वापर का विमर्श (दो में से एक का निश्चय ) नहीं करते इसलिए वे मृषा बोलते हैं'
३. (परलोक आदि) सत्य हैं या असत्य हैं ? ( यह हम नहीं जानते ) - ऐसा चिन्तन करते हुए तथा यह बुरा है. यह अच्छा है ऐसा कहते हुए वे मृषा बोलते हैं ।)
जो ये अनेक विनयवादी जन हैं वे (बिना पूछे वा पूछने पर भी विनय को ही यथार्थ बतलाते हैं ।'
४. वे अज्ञानवश " यह कहते हैं कि यही अर्थ (विनय ही वास्तविक है ) - ऐसा हमें अवभाषित होता है ।
आत्मा भविष्य में (वर्तमान और अतीत में भी) कर्म से बद्ध नहीं होता।" अत्रिय आत्मवादी क्रिया को स्वीकार नहीं करते ।
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