Book Title: Agam 02 Ang 02 Sutrakrutang Sutra Suyagado Terapanth
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya, Dulahrajmuni
Publisher: Jain Vishva Bharati
View full book text
________________
सूयगडो १
-२७४
अध्ययन ५: टिप्पण १३३
प्रतिपादित है। उनके अन्तर्गत अनेक ध्रुत और हैं । धुत अनेक हैं। धुत का अर्थ है-प्रकम्पित, पृथ्वकृत । कुछेक धुत ये हैंस्वजन परित्याग धुत, कर्म परित्याग धुत, उपकरण और शरीर परित्याग धुत आदि, आदि ।
चूर्णिकार ने 'धुत' का अर्थ कर्म को प्रकंपित करने वाला चारित्र किया है।'
वृत्तिकार ने 'धुत' के स्थान पर 'धुव' शब्द मानकर उसका अर्थ-मोक्ष या संयम किया है।' १३३. कर्मक्षय के काल की (कालं)
चूर्णिकार ने इसके दो अर्थ किए हैं१. समस्त कर्मों के क्षम का काल । २. पंडित मरण का काल । वृत्तिकार ने इसका अर्थ-मृत्युकाल किया है।"
मुनि को जीवन या मरण की आकांक्षा नहीं करनी चाहिए---यह जैन परंपरा सम्मत तथ्य है। ऐसी स्थिति में प्रस्तुत प्रसंग में 'कखेज्ज कालं' का अर्थ मरण की आकांक्षा न होकर, कर्मक्षय की आकांक्षा अथवा पंडित-मरण (समाधि मरण) की आकांक्षा-ये दोनों हो सकते हैं।
१. चूणि, पृ० १४० : धूयतेऽनेन कर्म इति धुतं चरित्रमित्युक्तम् । २. वृत्ति, पत्र १४१: ध्रुवो-मोक्षः संयमो वा । ३. चूणि, पृ० १४१: कालं............सर्वकर्मक्षयकालं, यो वाऽन्यो पण्डितमरणकालः । ४. वृत्ति, पत्र १४१ : कालं-मृत्युकालम् ।
Jain Education Intemational
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org