Book Title: Agam 02 Ang 02 Sutrakrutang Sutra Suyagado Terapanth
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya, Dulahrajmuni
Publisher: Jain Vishva Bharati
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मूल
१. कमरे धम्मे अखाए माहणेण मईमता ? | अंजू धम्मं जहातच्चं जिणाणं तं सुणेह मे ॥
२. माहना बत्तिया बेस्सा चंडाला अदु बोल्कसा। एसिया बेतिया मुद्दा जे य आरंभणिस्सिया ॥
३. परिग्गहे वेरं सि आरंभसंभिया
ण ते दुक्खविमोयगा ॥ ४. आघात किमाहे गाइओ विसएसिणो । अण्णे हरंति तं वित्तं कम्मी कम्मेहि किच्चती ॥
णि विद्वाणं पवड्ढई ।
कामा
५. माता पिता हुसा भाया भज्जा पुत्ता य ओरसा । गालं ते मम ताणाए लुप्तस्स सकम्मुणा ॥
सपेहाए
६. एयमट्ठ परमट्टानुगामियं जिम्ममो निरहंकारो चरे भिक्खू जिणाहियं ॥ ( युग्मम् )
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७. चिच्चा वित्तं च पुत्ते य थाइओ व परिग्यहं । चिच्चाण अंतर्ग सोवं णिरवेक्खो
परिव्वए ।
नवमं श्रभयणं : नौवां अध्ययन
धम्मो : धर्म
संस्कृत छाया
कतरः धर्मः माहनेन ऋजं धर्म यथातथ्यं जिनानां तत् शृणुत मे ॥
आख्यातः, मतिमता ?
ब्राह्मणाः क्षत्रियाः वैश्याः, चण्डाला अथ बोक्कसाः । ऐषिका: वैशिकाः शूद्राः, ये च आरम्भनिश्रिताः ॥
परियहे वरं तेषां
निविष्टानां, प्रवर्धते । आरम्भसंभूताः कामाः, न ते दुःखविमोचकाः ॥
आघातकृत्यमाधाय,
ज्ञातयो विषयेषिणः । अन्ये हरन्ति तद् वित्तं, कर्मी कर्ममिः
कृत्यते ॥
औरसाः ।
माता पिता स्नुषा धाता, भार्या पुत्राश्च नालं ते मम लुप्यमानस्य
एतमर्थं परमार्थानुगामिकम् निर्ममो निरहंकार:, चरेद् भिक्षजिनाऽाहृतम् ॥
( युग्मम् )
त्राणाय, स्वकर्मणा ।
संप्रेक्ष्य,
त्यक्त्वा वित्तं च पुत्रांश्च, ज्ञातीच परिग्रहम् । त्यक्त्वा अन्तगं श्रोतः, निरपेक्ष:
परिव्रजेत् ॥
हिन्दी अनुवाद
१. ने पूछा मतिमान् श्रमण महावीर ने कौनसा' धर्म बतलाया है ? (सुधर्मा ने कहा) तीर्थंकरों के ऋजु और यथार्थ धर्म को तुम मुझसे सुनो।
२. ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, चांडाल, बोक्कस', बहे - लिए, व्यापारी" शूद्र" तथा और भी जो हिसारत हैं",
३. जो परिग्रह में निविष्ट" (अर्जन, सुरक्षा और भोग में रत) हैं, उनका वैर बढ़ता है।" काम आरंभ ( प्रवृत्ति ) से पुष्ट होते हैं ।" वे दुःख का" विमोचन नहीं करते ।
४. ( मर जाने पर ) मरणोपरान्त किए जाने वाले अनुष्ठान संपन्न कर विषय की एषणा करने वाले पारिवारिक तथा अन्य लोग उसके धन का हरण कर लेते हैं और कर्मी (जिसने धन के लिए कर्म का बंधन किया है) अपने कर्मों से छिन्न होता है ।
५. जब मैं अपने द्वारा किए गए कर्मों से छेदा जाता हूं", तब माता, पिता, पुत्र वधू, भाई, पत्नी और औरस पुत्र- ये सभी मेरी रक्षा करने में समर्थ नहीं होते । "
६. परमार्थ की ओर ले जाने वाले" इस अर्थ को समझकर" भिक्षु ममता" और अहंकार से शून्य" होकर .जिनवाणी का आचरण करे ।
७. धन, पुत्र, परिवार, परिग्रह तथा आन्तरिक स्रोत ( क्रोध आदि ) " को छोड़, अपेक्षा रहित हो परिव्रजन करे।"
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