Book Title: Agam 02 Ang 02 Sutrakrutang Sutra Suyagado Terapanth
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya, Dulahrajmuni
Publisher: Jain Vishva Bharati
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टिप्पण : अध्ययन ११
श्लोक १:
१. श्रमण भगवान् महावीर (माहणेण)
यहां चूर्णिकार ने माहण और श्रमण शब्द को एकार्थक माना है और 'माण' शब्द से भगवान् महावीर का ग्रहण किया
वृत्तिकार ने इसका अर्थ तीर्थंकर किया है।' २. कौन सा (कयरे)
जंबू स्वामी सुधर्मा स्वामी से कुछ प्रश्न करते हैं। प्रथम तीन श्लोकों में प्रश्न हैं । चौथे श्लोक से उत्तर प्रस्तुत किए गए हैं। ३. मार्ग (मग्ग)
भगवान् महावीर ने अपनी साधना-पद्धति को 'मार्ग' नाम से अभिहित किया है। आचारांग में छह स्थलों में 'मार्ग' शब्द का उल्लेख मिलता है
१. एस मग्गे आरिएहिं पवेइए......२।४७, २।११६, ५।२२ २. दुरणुचरो मग्गो वीराणं अणियट्टगामीणं ४।४२ ३. .....'णत्थि मग्गे विरयस्स त्ति बेमि ५।३० ४. से किट्टति तेसि समुट्ठियाणं णिक्खित्तदंडाणं समाहियाणं पण्णाणमंताणं इह मुत्तिमग्गं......६।३ इनमें एक स्थल पर 'मुक्तिमार्ग' का और शेष सब स्थलों पर केवल 'मार्ग' का प्रयोग है। प्रस्तुत मागम में भी इसका अनेक स्थलों पर प्रयोग मिलता है। १. वेयालियमग्गमागतो......१।२।२२ २. जे तत्थ आरियं मग्गं १।३।६६
आचार्य उमास्वाति ने इसी आधार पर 'सम्यग्दर्शनज्ञानचारित्राणि मोक्षमार्गः'-इस सूत्र की रचना की। यह सूत्र मोक्ष मार्ग की परिभाषा करने वाला सूत्र है। उत्तराध्ययन (२८१२) में भी मार्ग की परिभाषा मिलती है। वहां ज्ञान, दर्शन, चारित्र और तप को मोक्षमार्ग बतलाया है
'नाणं च सणं चेव, चारित्तं च तवो तहा।
एस मग्गो ति पन्नत्तो, जिणेहिं वरदंसिहि ॥ प्रस्तुत श्लोक में 'मार्ग' का प्रयोग 'मोक्ष मार्ग' के अर्थ में हुआ है । प्रश्नकर्ता ने उस मार्ग की जिज्ञासा की है जो सरल, उस पार ले जाने वाला, अनुत्तर, शुद्ध और सब दुःखों से मुक्ति दिलाने वाला हो। १. चूणि, पृ० १९५ : (माहणे त्ति वा) समणे त्ति वा एगळं, भगवानेवापदिश्यते । २. वृति, पत्र २०० : माहनः-तीर्थकृत् । ३. वृत्ति, पत्र २०० : विचित्रत्वात्रिकालविषयत्वाच्च सूत्रस्यागामुकं प्रच्छकमाश्रित्य सूत्रमिदं प्रवृत्तम्, अतो जम्बूस्वामी सुधर्मस्वामिन
मिदमाह।
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