Book Title: Agam 02 Ang 02 Sutrakrutang Sutra Suyagado Terapanth
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya, Dulahrajmuni
Publisher: Jain Vishva Bharati
View full book text
________________
सूयगडो १
प्र०१: समय : श्लो०८७-८८
८७. एतेहिं तिहि ठाणेहि
संजए सययं मुणी । उक्कसं जलणं णममझत्थं च विगिचए।१२।
एतेषु त्रिषु स्थानेसु, संयतः सततं मुनिः । उत्कर्ष ज्वलनं णमं'. अध्यस्तं च विवेचयेत् ।।
८. मुनि इन तीन स्थानों-ईर्या समिति, आसन-शयन
और भक्त-पान में सतत संयत रहे । वह मान, क्रोध, माया" और लोभ का विवेक करे-- उन्हें आत्मा से पृथक् करे।
८८. समिए तु सया साहू
पंचसंवरसंवडे सितेहि असिते भिक्खू आमोक्खाए परिवएज्जासि ।१३।
समितस्तु सदा साधुः, पञ्चसंवरसंवृतः सितेषु असित: भिक्षुः, आमोक्षाय परिव्रजेत् ॥
८८. पांच समितियों से सदा समित, पांच संवरों से संवृत
भिक्षु (नाना प्रकार की आसक्तियों और मतवादों से) बंधे हुए लोगों के बीच में अप्रतिबद्ध रहता हुआ अंतिम क्षण तक मोक्ष के लिए परिव्रजन करे ।
-त्ति बेमि ।।
-इति ब्रवीमि ।
-ऐसा मैं कहता हूं।
Jain Education Intemational
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org