Book Title: Agam 02 Ang 02 Sutrakrutang Sutra Suyagado Terapanth
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya, Dulahrajmuni
Publisher: Jain Vishva Bharati
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सूयगडो १
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अध्ययन २: टिप्पण १०७
यद्यपि संबोधि के अहिंसा, संवर आदि गुणों का सभी तीर्थंकरों ने प्रतिपादन किया है, फिर भी उनके प्रतिपादन में जितनी समानता ऋषभ और महावीर में है, उतनी अन्य तीर्थंकरों में नहीं है। बाईस तीर्थंकरों ने चातुर्याम धर्म का प्रतिपादन किया, उस स्थिति में ऋषभ और महावीर ने पांच महाव्रतों का प्रतिपादन किया। सभी तीर्थकर धर्म की व्याख्या स्वतंत्र भाव से करते हैं। वे किसी पूर्व परंपरा से प्रतिबद्ध होकर उसकी व्याख्या नहीं करते, किसी परंपरा का अनुसरण नहीं करते । इसलिए सभी तीर्थंकरों द्वारा प्रतिपादित धर्म में समानता खोजने का प्रयत्न सार्थक नहीं है। किन्तु धर्म का मूल तत्त्व सबके प्रतिपादन में समान होता है। यही प्रस्तुत दो श्लोकों का प्रतिपाद्य है।
श्लोक ७६ः
१०७. श्लोक ७६:
मिलाएं-उत्तरज्झयणाणि ६/१७ ।
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