Book Title: Agam 02 Ang 02 Sutrakrutang Sutra Suyagado Terapanth
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya, Dulahrajmuni
Publisher: Jain Vishva Bharati
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यूयगडो १
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अध्ययन ३ : टिप्पण ८८-६१
वृत्तिकार ने इसका अर्थ सुशिलष्ट किया है। जो अहिंसा आदि की प्रवृत्ति के द्वारा प्राणियों में प्रीति उत्पन्न करता है वह पेशल होता है।
श्लोक ६१ : ८८. अतीतकाल में (पुस्वि)
चूर्णिकार ने मतान्तर का उल्लेख करते हुए अतीतकाल से त्रेता और द्वापर युग का ग्रहण किया है।' वृत्तिकार ने इसका अर्थ केवल पूर्वकाल किया है।' ८६. महापुरुष (महापुरिसा)
वे प्रधान पुरुष जो राजा होकर वनवास में गए और फिर निर्वाण को प्राप्त हुए।
वृत्तिकार ने इसका अर्थ प्रधान पुरुष किया है और उदाहरण के रूप में वल्कलचीरी, तारागण आदि ऋषियों का उल्लेख किया है।' १०. सचित्त जल से स्नान आदि करते हुए सिद्धि को प्राप्त हुए हैं (उदएग सिद्धि मावणा)
कुछेक ऋषि सचित्त जल का व्यवहार करते हुए सिद्ध हो गए-ऐसा परंपरा से सुना जाता है। वे सचित्त जल से शौचकार्य करते, स्नान करते तथा हाथ-पैर आदि बार-बार उसी से धोते, वे सचित्त जल पीते और जल के बीच खड़े होकर (नदी आदि में) अनुष्ठान करते।
श्लोक ६२,६३ : ६१. श्लोक ६२,६३ :
प्रस्तुत दो श्लोकों में ७ ऋषियों के नाम गिनाए हैं। वे ये हैं -(१) वैदेही नमि (२) रामगुप्त (३) बाहुक (४) तारागण (५) आसिल-देविल (६) द्वैपायन और (७) पाराशर । 'इह संमया' [३/६४]-इस वाक्य के द्वारा सूत्रकार ने यह सूचित किया है कि ये महापुरुष ऋषिभाषित आदि जैन-प्रन्यों में वणित हैं तथा 'अणुस्सुयं' पद के द्वारा यह सूचित किया है कि भारत आदि पुराणों में भी इनका वर्णन प्राप्त है। चूणिकार के अनुसार ये सब राजर्षि और प्रत्येक-बुद्ध थे। इनमें से वैदेही नमि की चर्चा उत्तराध्ययन के नौवें अध्ययन में प्राप्त है और शेष राजर्षियों की चर्चा ऋषिभाषित नामक ग्रन्थ में है। किन्तु वर्तमान में उपलब्ध ऋषिभाषित ग्रन्थ में पाराशर ऋषि का नाम प्राप्त नहीं है। इस ग्रन्थ में सबके नाम से एक-एक अध्ययन है और उन अध्ययनों में उनके विशिष्ट विचार संगृहीत हैं ।
१.वैदेही नमि-विदेह राज्य में दो नमि हुए हैं। दोनों अपने-अपने राज्य को छोड़कर अनगार बने । एक तीर्थंकर हुए और एक प्रत्येक बुद्ध । प्रस्तुत प्रकरण में प्रत्येक बुद्ध नमि का कथन है। ये किस के तीर्थकाल में हुए यह ज्ञात नहीं है। उत्तराध्ययन के नौवें अध्ययन में 'नमि-प्रव्रज्या' में अभिनिष्क्रमण के समय ब्राह्मण वेशधारी इन्द्र और नमि के बीच हुए वार्तालाप
१. वृत्ति, पत्र ६५ : पेशलम् इति सुश्लिष्टं प्राणिनामहिंसाविप्रवृत्त्या प्रीतिकारणम् । २. चूणि, पृ०६५ : पुग्विमिति अतीते काले केचित् त्रेतायां द्वापरे च । ३. वृत्ति, पत्र ६५ : पूर्व-पूर्वस्मिन् काले । ४. चूणि, पृ० ६५ : महापुरिसा पहाणा पुरिसा, राजानो भूत्वा वनवासं गता पच्छा णिव्वाणं गताः । ५. वृत्ति, पत्र ६५ : महापुरुषा:-प्रधानपुरुषा वल्कलचीरितारागणषिप्रभृतयः । ६. चूणि, पृ०६५ : सोतोदगं णाम अपरिणतं, तेण सोयं आयरंता म्हाण-पाण-हत्यादीणि अभिक्खणं सोएंता तथाऽन्तर्जले वसन्तः सिद्धि
प्राप्ताः सिद्धाः। ७. चूणि, पृ० ९६ : णमी ताव गमिपबम्जाए, सेसा सम्वे अण्णे इसिमासितेसु ।
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