Book Title: Agam 02 Ang 02 Sutrakrutang Sutra Suyagado Terapanth
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya, Dulahrajmuni
Publisher: Jain Vishva Bharati
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सूयगडो १
२०६
नाग्निस्तृप्यति काष्ठानां नापगानां महोदधिः । नांतसर्वभूतानां न पुंसां वामलोचनाः ॥
,
अग्नि लकड़ी से कभी तृप्त नहीं होती । समुद्र नदियों से कभी तृप्त नहीं होता । मौत प्राणियों से तृप्त नहीं होती । इसी प्रकार स्त्रियां पुरुषों से तृप्त नहीं होतीं ।
स्त्रीवेद का दूसरा अर्थ है— वैशिकतंत्र तेवीसवें श्लोक में नूषिकार ने इसका यही अर्थ किया है।' यह स्त्रियों के व्यवहार सम्बन्धी जानकारी देने वाला एक प्राचीन ग्रन्थ था । इसका अनुगोगद्वार' और नंदी' में भी उल्लेख मिलता है। वैशिकतंत्र में कहा है
'स्त्रियां हंसती हैं, रोती है धन के लिए। वे पुरुष को अपने विश्वास में लेती है किन्तु उन पर विश्वास नहीं करतीं । कुल और बीज संपन्न पुरुष उनको वैसे ही छोड़ दे जैसे श्मशान पर ले जाई जाने वाली इंडिया नहीं छोड़ दी जाती है।'
'स्त्रियां समुद्र की लहरों की भांति चंचल स्वभाववाली और सन्ध्या के मेघ की तरह अल्पकालीन अनुरागवाली होती हैं । अपना काम बन जाने पर स्त्रियां निरर्थक पुरुष को वैसे ही छोड़ देती हैं जैसे बिना पिसा हुआ अलक्तक छोड़ दिया जाता है ।'
'स्त्रियां सामने कुछ और कहती हैं और पीठ पीछे कुछ और ही । उनके हृदय में कुछ और ही होता है । उनको जो करना होता है, वे कर लेती हैं।
५६. श्लोक २० :
स्त्री के स्वभाव का परिज्ञान दुर्लभ है - इस विषय में चूर्णिकार और वृत्तिकार ने एक कथा प्रस्तुत की है । वह इस
प्रकार है
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अध्ययन ४ : टिप्पण ५8
एक युवक कामशास्त्र का अध्ययन करने के लिए घर से निकला। उस समय पाटलिपुत्र में वैशिक ( कामशास्त्र) का अध्ययन होता था । वह पाटलिपुत्र की ओर प्रस्थित हुआ । मध्यवर्ती एक गांव में वह विश्राम के लिए ठहरा। उस नगर की एक स्त्री उससे मिली । उसने पूछा - 'युवक ! तुम आकृति से बहुत ही सुन्दर हो । तुम्हारे शरीर के अवयव बहुत कोमल हैं । कहां जा रहे हो ?' उसने कहा- 'तरुणी ! मैं कामशास्त्र का अध्ययन करने के लिए पाटलिपुत्र जा रहा हूं।' वह बोली- 'अध्ययन पूरा कर जब तुम घर लौटो तब मुझे मत भूल जाना । इस गांव में पुनः आना ।' उसने स्त्री की प्रार्थना स्वीकार कर ली । वह पाटलिपुत्र पहुंचा । कामशास्त्र का अध्ययन प्रारंभ हुआ ।
कुछ ही वर्षों में अध्ययन पूरा कर वह पुनः उसी गांव में आया और उसी स्त्री के घर गया । वह स्त्री उसे देखते ही संभ्रम से उठी और उसे ठहरने का स्थान दिया । अब वह विविध प्रकार से उसकी सेवा करने लगी। उसके लिए उचित भोजन, स्नान आदि की व्यवस्था कर उसने युवक का हृदय जीत लिया । वह उसके इंगित और आकार के अनुसार वर्तन करने लगी । युवक ने सोचा- 'यह मुझे चाहती है । यह मेरे में अनुरक्त है ।' उसने उस स्त्री का हाथ पकड़ा। स्त्री ने जोर से चिल्लाया । लोगों के एकत्रित होने से पूर्व ही उसने उस युवक के मस्तक पर पानी से भरा एक छोटा घड़ा फेंका। घड़ा फूट गया । घड़े का पृ० १११ इथिवेदो नाम वैशिकम् ॥ २. अनुयोगद्दाराई, सू० ४६ : लोइयं भावसुगं—जं इमं
१.
३. नंदी, सू० ७२ : मिच्छसुत्तं जं इमं
भारहं"
४. णि, पृ० ११० वैशिकतन्त्रम्-
'भारहं" "वेसितं ।
वेसियं ।
एता हसन्ति च रुदन्ति च अर्थहेतोः, विश्वासयन्ति च नरं न च विश्वसन्ति । तस्मान्नरेण कुल- शीलसमन्वितेन, नार्यः श्मशानघटिका इव वर्जनीयाः ॥ समुद्रवीचीव चलस्वभावाः, सन्ध्याभ्ररेखेव मुहूर्त्त रागाः । स्त्रियः कृतार्थाः पु निरर्थकं निष्योडितास
स्पन्ति ।।
तथा
अण्णं भणति पुरतो अण्णं पासे णिवज्जमाणीओ । अयं सासि हिमए जं च खमेसे करेति महिलाओ ।
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