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भूमिका .
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___ यहाँ इन पंक्तियों को लिखते समय मैं सुश्री सुषमा शर्मा के योगदान को भी नहीं भूल सकता हूँ जिनकी बजह से ही मैं इस पुस्तक को लिपि बद्ध करने को उद्यत हुआ था। विदुषी सुषमा जी ने ही उस समय मेरे समक्ष इतने जटिल प्रश्न रखे थे तथा उनके वाक्य चातुर्य के कारण उस समय उनके प्रश्नों का उत्तर देना मुझे सम्भव नहीं हुआ था लेकिन अपने अनुभवों के साक्षात हो जाने के कारण से उनके प्रश्नों से थक कर चुप हो जाना भी मुझे सम्भव नहीं था उनके प्रश्नों के उत्तर देने के लिए ही शुरू में मैंने इस पुस्तक को लिखना शुरू किया था।
मेरी परिवारिक आध्यात्मिक विरासत ने मेरे साधना काल में मेरे समक्ष बड़े महत्वपूर्ण रूप से अपनी भूमिका निभाई थी जिसके कारण से मेरा बहुत सारा समय व्यर्थ की चीजों में बर्वाद होने से बच सका था बचपन से लेकर आज तक भी हर समय कदम-कदम पर मेरा मार्ग दर्शन होता रहा है, मेरे पूज्य पिता श्री प्रभूदयाल जी वैद्य जिन्होंने अपने जीवन काल में सैंकड़ों की संख्या में योगासनों के शिविर लगाए हैं उनका तथा अपने बड़े भाई श्री रामदेव जी, छोटे भाई विष्ण देव एवं बचपन के मित्र श्री रमेश चन्द जी लोहिया जिन्होंने इस पुस्तक के प्रकाशन से पूर्व मुझे प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से मेरे मन में आयी परेशानियों का निराकरण करने में अपना अमूल्य सहयोग दिया, उनकी वात्सल्यपूर्ण प्रेरणाओं व शुभकामनाओं को हगिज नहीं भुला सकता हूँ।
इसी अवसर पर मैं मेरे गुरु भाई श्री बाबू लाल जी गुप्ता एवं मित्र श्री देवेन्द्र नाथ जी गुप्ता एडवोकेट का भी हृदय से आभारी हूँ जिन्होंने कदम-कदम पर आई आर्थिक परेशानियों को हल कराके इस पुस्तक के प्रकाशन कार्य को पूर्णता प्रदान करने में अपूर्व योगदान किया।
अन्त में मैं पाठकों से भी क्षमा याचना करके यह निवेदन करना अपना कर्त्तव्य समझता है कि वे मेरी भाषा की कमजोरी, शब्दों की अशुद्धता एवं धारावाहिक लेखन शैली की कभी को विचार न करके मेरे द्वारा की गई साधना के आधार पर अपनी शैली में जो कुछ मैंने लेख बद्ध किया है उसका स्वाध्याय करके लाभान्वित होंगे एवं इस सम्बन्ध में जो भी शंकाएं एवं प्रश्न होगें उनसे मुझे निःसंकोच अवगत कराने का कष्ट करेगें।
हालांकि मेरी अपनी इच्छा का कोई खास औचित्य मैं सिद्ध नहीं कर पा रहा है लेकिन फिर भी शायद वहुत गहरे में अपनी इसी भावना के तहत मैं यह लिखने को उद्यत हो रहा हूँ कि साधक शुरू में अध्यात्म के
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