Book Title: Yog aur Sadhana
Author(s): Shyamdev Khandelval
Publisher: Bharti Pustak Mandir

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Page 14
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भूमिका पुस्तक का लेखन पूर्ण हो जाने के पश्चात् चमत्कारिक रूप से परम पूज्य श्री गुरूजी श्री श्री नवल किशोर जी गोस्वामी जी महाराज से मेरी मुलाकात गुरु पूर्मिणा के पर्व पर श्री कृष्णचन्द्र जी माथुर टोंक फाटक, जयपुर के मकान पर हो गयी थी । सत्रह वर्ष के लम्बे अन्तराल के बाद के मिलन में क्या कुछ था वर्णन नहीं कर सकता हूँ । "बस : गिरा अनयन नयन बिनु वाणी । जब थोड़ा मैं संयत हुआ तब प्रसंग वश मैंने अपनी इस अप्रकाशित पुस्तक को उनके सामने प्रकाशित करवाने की आज्ञा लेने हेतु उनसे विनती की। गुरूजी महाराज ने कृपा करके अध्ययन हेतु इस पुस्तक की पाण्डुलिपि अपने पास मंगाली । मकर संक्रान्ति के पावन दिवस दिनांक 14-1-85 को श्री गुरुजी का अमूल्य प्रेरणामय आर्शीवाद के साथ एक विशेष पत्र मिला उसके ही साथ पाँच सौ रुपये का एक चैक भी मुझे मिला । उन्हीं की कृपा आर्शीवाद एवं प्रेरणा का फल था कि अपने पास किसी पुस्तक को प्रकाशित करवाने का कोई भी पूर्वानुभव नहीं होते हुये भी मैं इस पुस्तक को प्रकाशित कराने में सफल हो सका । पण्डित द्वारका प्रसाद जी भारती पुस्तक मन्दिर वालों से मेरा पुराना नजदीकी परिचय था । गुरु स्मरण करके मैंने वह गुरुजी का आदेश तथा पुस्तक को विषय सूची उन्हें दिखाई, पता नहीं क्या हुआ कि उन्होंने पहली नजर में ही पुस्तक को छपवाने की हाँ कह दी । देव योग से भारतीनन्दन डा० रामानन्द जी तिवारी जिनकी पुस्तकें भी भारती पुस्तक मन्दिर वालों के ही प्रकाशन में प्रकाशित होती हैं अचानक वहीं पर आ 1 गये । पं० द्वारका प्रसाद जी ने प्रसंग चला कर श्री तिवारी जी से इस पुस्तक के बारे में कहा, मेरे मन में बड़ी बैचेनी थी कि इतने बड़े विद्वान की नजरों में मेरी लेखनी कहाँ तक स्वीकार होगी, लेकिन मैं उस समय हतप्रभ रह गया जब उन्होंने पुस्तक की विषय सूची का अवलोकन करके इसे उत्तम बताया । तथा पूर्ण रूप से गहन अध्ययन करके स्वयं ही इसका शीर्षक "योग और साधना" प्रदत्त किया । For Private And Personal Use Only

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