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योम और साधना
___ डा. रामानन्द जी तिवारी हमारे देश के ही नहीं अर्न्तराष्ट्रीय स्तर के महान मनीषी, चिन्तक एवं तत्त्वदर्शी हैं, जिनकी अनगिनत कृतियों ने दर्शन विषय को नये नये आयाम छूने को बाध्य किया है, ऐसे उदारमना, वीतरागी, दर्शन शास्त्री एवं अनगिनत शैक्षणिक योग्यताओं के धनी थी तिवारी जी का इस पुस्तक को प्रकाशित होने में सहयोग प्रदान करने के लिए मैं उनका हृदय से आभारी हूँ।
मेरे द्वारा इस पुस्तक को लिखे जाते समय मुझे कदम-कदम पर यही लगता रहा कि मैंने इस पुस्तक को लिखना शुरू तो कर दिया है लेकिन यह कार्य अपनी पूर्णता को कैसे प्राप्त होगा, कई बार तो भापाई ज्ञान बहुत ही कमजोर होने के कारण से मुझे बड़ी हताशा का भी सामना करना पड़ा लेकिन अपनी साधना के दौरान किये गये अनुभवों ने बार-बार किसी भी तरह से लिखते रहने के लिए मुझे उत्साहित किये रखा, यहो कारण था कि अपने हाथ से लिखी पान्डलिपि में कई-कई वार मुझे सूधार करना पड़ा जिस कारण से अनावश्यक विलम्ब भी हआ मेरे अनन्य मित्र श्री गोपालाचार्य जो ने पं० रामकुमार जी से मेरी घसीट लिखाई को -सूलेख में परिवर्तन कराने का काम नाम मात्र के पारश्रमिक में करवा दिया था। उनके इस सहयोग के लिए मैं स्वयं तथा वो पाठक गण जो इसको पढ़ तथा समझकर साधना लाभ उठायेंगे उनकी तरफ से भी मैं श्री गोपालाचार्य का हृदय से आभारी हूँ। तथा उन्हें कोटिशः धन्यवाद देता हूँ।
आज इस पुस्तक के छप जाने के पश्चात् भी मेरा मन तथा मस्तिष्क यही कल्पना करता है कि हो न हो मेरे दिवंगत अन्धे ताऊजी स्वर्गीय श्री मोती लाल जी भक्त जिन्होंने मेरी साधना के सोंपानों को पूरा करते समय भी कई तरह से मुझे सहयोग दिया था उन्होंने हो इस पुस्तक को लेखनी बद्ध किये जाने में भी मेरा दिग्दर्शन किया होगा । मेरे ताऊजी जो मुझे बचपन से ही बहुत ज्यादा चाहते थे। मैं उनके पास रहकर खोह गाँव के स्कूल में ही नहीं पढ़ा बल्कि उनके गाँव से डीग आने के पश्चात् भी मुझे उनके सान्निध्य में रहने का तथा उनके ज्ञान के दर्शन का श्रुति लाभ मिलता रहा था यही कारण है कि तब और आज भी उनकी पवित्र आत्मा मेरी प्रेरणा की स्रोत बनी हुई है।
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