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[ xiii ] चिन्तन आगम और आगमेत्तर साहित्य पर अवलम्बित है, तो साथ ही आधुनिक विज्ञान के परिप्रेक्ष्य में भी उन्होंने प्रस्तुत ग्रंथ में जो चिन्तन का नवनीत प्रस्तुत किया है, वह प्रबुद्ध पाठकों के लिए बहुत ही उपयोगी है। महासतीजी ने अनेक प्रमाणों एवं प्रयोगों के आधार पर आध्यात्मिक ऊर्जा के रूप में योग का विशद प्रतिपादन किया है। वहीं पर शरीर-विज्ञान की दृष्टि से योग के प्रयोगों पर विज्ञान सम्मत तथा अनुभव गम्य विवेचन भी प्रस्तुत किया है। योग से शरीर में रासायनिक परिवर्तन एवं लेश्या आदि भावों का मनोवैज्ञानिक विश्लेषण महासती जी की गहरी अनुसंधान दृष्टि का परिचय देता है। ___मनोयोग के विविध पहलुओं पर सूक्ष्म चिन्तन करते हुए तनाव मुक्ति के प्रासंगिक विषय पर महासती जी के अनुभूत प्रयोग तथा तनाव रहित स्थिति की प्राप्ति का सुन्दर स्वरूप भी प्रतिपादित किया है।
मुझे विश्वास है कि महासती जी का यह चिन्तन, चिन्तन के लिए ही नहीं है अपितु जीवन के लिए भी ग्राह्य है। हमें किस प्रकार मन, वचन, काया के योगों का निरुधन करना चाहिए और किस प्रकार साधना के पथ पर सुदृढ़ कदम बढ़ाने चाहिए इसका सुन्दर विश्लेषण हुआ है।
__ हमें सात्विक गौरव है कि हमारे संघ में ऐसी परम् विदुषी साध्वी, जिनका तलस्पर्शी आगमो का अध्ययन है और साथ ही अन्य धर्मदर्शनों एवं आधुनिक मनोविज्ञान का भी अध्ययन है, और जिन्होंने अध्ययन के बल पर ही नहीं अपितु अनुभूति के बल पर प्रस्तुत ग्रंथ का लेखन किया है। आधुनिक भौतिकवाद के युग में मानव इधर-उधर भटक रहा है, भौतिकवाद की चकाचौंध में वह अपने लक्ष्य से भ्रष्ट हो चुका है, ऐसी विकट वेला में प्रस्तुत ग्रंथ प्रकाश-स्तम्भ की तरह उपयोगी सिद्ध होगा? यह ग्रंथ भारती भण्डार में श्री की अभिवृद्धि करेगा।इसी मंगल मनीषा के साथ हार्दिक आशीर्वाद ।
- आचार्य देवेन्द्र मुनि शान्ति सदन (जैन स्थानक) भीलवाड़ा।