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श्री-वीरवर्धमानचरिते
[ ८.३६विवेकी कोऽत्र यो वेत्ति विचारं निस्तुषं हृदि । देवशास्त्रगुरूणां च धर्मादीनां न चापरः ॥३६॥ को धर्मी यो युतः सारैः क्षमाद्यैर्दशलक्षणः । जिनाज्ञापालको धोमान् व्रती ज्ञानी न चापरः ॥३७॥ किममुत्र सुपाथेयं यत्पुण्यं निर्मलं कृतम् । दानपूजोपवासाद्यैर्वतशीलयमादिभिः ॥३८॥ सफलं जन्म कस्येह येनाप्ता बोधिरुत्तमा । मुक्तिश्रीसुखमाता च तस्य नान्यस्य जातुचित् ॥३९।। कः सुखी जगतां मध्ये यः सर्वोपधिवर्जितः । ज्ञानध्यानामृतस्वादो वनवासी न चापरः ॥४०॥ चिन्ता क्वात्र विधेयाहो कारीणां विधातने । साधने मुक्तिलक्ष्म्याश्च नान्यत्र खादिशर्मणि ।।४१॥ क विधेयो महान् यत्नः पालने शिवदायिनाम् । रत्नत्रयतपोयोगज्ञानादीनां न संपदाम् ॥४२॥ कः सुहृत्परमः पुंसां यो बलात्कारयेद् वृषम् । तपो दानं व्रतादीनि दुराचारं निवायं च ॥४३॥ कः शत्रुर्विषयो योऽत्र तपोदीक्षावतादिकान् । हितान् ददाति न दातुं स शत्रुः स्वान्ययोः कुधीः ॥४४॥ किं श्लाघ्यं यन्महहानं सुक्षेत्रेऽल्पधनान्वितैः । तपो वा दुर्बलाङ्गैर्यत् क्रियतेऽनघमूर्जितम् ॥४५॥ त्वत्समा का महादेवी महादेवं जगद्गुरुम् । सूते या धर्मकर्तारं मत्समा सा न चापरा ॥४६॥ किं पाण्डित्यं श्रुतं ज्ञात्वा यदुराचारदुर्मदम् । मनाग न क्रियतेऽन्यद्वा पापहेतुक्रियादिकम् ॥४७॥ किं मूर्खत्वं परिज्ञाय यज्ज्ञानं हितकारणम् । तपो धर्मक्रियाचारं निःपापं न विधीयते ॥४८॥
निर्मल आचरणोंसे तथा दुष्कर तपोयोगोंसे मोक्षकी इच्छा करता है, वही महालोभी है ॥३५।। ( प्रश्न- ) इस लोकमें विवेकी पुरुष कौन है ? ( उत्तर- ) जो मनमें देवशास्त्र गुरुका और धमोदिकका निर्दोष विचार करता है, वह विवेकी है । अन्य कोई नहीं ॥३६॥ (प्रश्न-) धर्मात्मा कौन है ? ( उत्तर- ) जो सारभूत उत्तम क्षमादि दशलक्षण धर्मसे संयुक्त है, जिनआज्ञाका पालक है, बुद्धिमान , व्रती और ज्ञानी है, वही धर्मात्मा है। अन्य कोई नहीं ॥३७।। (प्रश्न-) परलोकमें जाते समय उत्तम पाथेय ( मार्गका भोजन ) क्या है ? ( उत्तर-) दान, पूजा, उपवासादिसे, तथा व्रत, शील संयमादिसे उपार्जित निर्मल पुण्य ही परलोकका उत्तम
थेय है ॥३८।। (प्रश्न-) इस संसारमें किसका जन्म सफल है? ( उत्तर-) जिसने मुक्तिश्रीकी सुखमयी मातास्वरूप उत्तम बोधि प्राप्त (भेदज्ञान) कर ली है, उसीका जन्म सफल है, अन्य किसीका नहीं ।।३९।। ( प्रश्न- ) जगत्में सुखी कौन है ? ( उत्तर-) जो सर्व परिग्रहसे रहित है, ज्ञान और ध्यान रूप अमृतका आस्वादन करनेवाला है, ऐसा वनवासी साधु संसारमें सुखी है और कोई सुखी नहीं ॥४०॥ (प्रश्न-) संसारमें चिन्ता किस वस्तुकी करना चाहिए ? ( उत्तर-) कर्म-शत्रुओंके विघात करनेमें, और मुक्ति लक्ष्मीके साधनमें चिन्ता करना चाहिए । इन्द्रियादिके सुखमें नहीं ॥४१।। ( प्रश्न - ) महान् प्रयत्न कहाँ करना चाहिए ? ( उत्तर-) शिव देनेवाले रत्नत्रयधर्म में, तपःसाधनमें और ज्ञानादिकी प्राप्तिमें प्रयत्न करना चाहिए । सांसारिक सम्पदाओंके पाने में नहीं ॥४२।। ( प्रश्न-) मनुष्योंका परम मित्र कौन है ? ( उत्तर - ) जो आग्रहपूर्वक धर्मको, तप, दान और व्रतादिको करावें और दुराचारको छुड़ावे ॥४३॥ ( प्रश्न -) संसारमें विषम शत्रु कौन है ? (उत्तर-) जो आत्महितकारक तप, दीक्षा और व्रतादिको ग्रहण न करने देवे, वह कुबुद्धि अपना और दूसरोंका परम शत्रु है ॥४४॥ ( प्रश्न- ) प्रशंसा करनेके योग्य क्या कार्य है ? ( उत्तर-) जो अल्प धनसे युक्त होनेपर भी उत्तम क्षेत्रमें महान् दान दे और दुर्बल अंग होनेपर भी निर्दोष उत्तम तपश्चरण करे, उसके ये दोनों कार्य प्रशंसनीय हैं ॥४५॥ (प्रश्न-) तुम्हारे समान और दूसरी महादेवी कौन है ? (उत्तर-) जो जगत्के गुरु और धर्मके कर्ता महान् देवको उत्पन्न करती है, वह मेरे समान है, दूसरी कोई नहीं है, ॥४६॥ ( प्रश्न-) पाण्डित्य क्या है ? ( उत्तर- ) जो शास्त्रोंको जानकर जरा-सा भी दुराचरण और दुरभिमान नहीं करता, तथा पापकी कारणभूत अन्य क्रियादिको नहीं करना ही पाण्डित्य है ॥४७॥ (प्रश्न- ) मूर्खता क्या है ? ( उत्तर-)
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