________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
१९४ श्री-वीरवर्धमानचरिते
[१८.५८त्रिशुद्धया द्वादशेमानि व्रतानि पालयन्ति ये । अतीचारादृते तेषां द्वितीया प्रतिमा वरा ॥५॥ त्यक्स्वाहारकषायादीन् गृहीत्वा मुनिसंयमम् । अन्ते सल्लेखना कार्या व्रतिभिः सत्पदाप्तये ।।५९।। सामायिकामिधा ज्ञेया तृतीया प्रतिमा शुभा। चतुर्थी प्रतिमा प्रोषधोपवासाह्वया परा ॥६॥ फलाम्बुबीजपत्रादि सचितं यत्सचेतनम् । दयायै त्यज्यते सर्व पञ्चमी प्रतिमात्र सा ।।६।। रात्रौ चतुर्विधाहारं यन्निराक्रियते सदा । दिवसे मैथुनं मुक्त्यै सा षष्ठी प्रतिमा वरा ॥२॥ पालयन्ति त्रिशुद्धया येऽत्रेमाः षट् प्रतिमा बुधाः । ते जघन्या मता सद्भिः श्रावकाः स्वर्गगामिनः ॥६३॥ चर्यते ब्रह्मचर्य यन्मनोवाकायकर्ममिः । मत्वाम्बावत् स्त्रियः सर्वा ब्रह्मचर्याभिधा हि सा।। ६४॥ वाणिज्याद्यखिलो निन्द्यो गृहारम्भोऽशुभार्णवः । त्यज्यते पापमीतैर्यः साष्टमी प्रतिमोर्जिता ॥६५॥ वस्त्रं विना समस्तानां सङ्गानां पापकारिणाम् । त्रिशुद्धया त्यजनं यत्सा नवमी प्रतिमा सताम् ॥६६॥ नवेमाः प्रतिमा येत्र भजन्ति रागदूरगाः। मध्यमाः श्रावकाः प्रोक्तास्ते जिनैः पूजिता सुरैः ॥६७॥ गृहारम्भे विवाहादौ स्वाहारे वा धनार्जने । निवृत्तिर्यानुमत्यादेर्दशमी प्रतिमात्र सा ॥८॥ त्यक्त्वाखाद्यमिवाशेषं सदोषान्नं कृतादिजम् । भिक्षया भुज्यतेऽनं तत्प्रतिमा सा परान्तिमी ॥६९॥ सर्वयलेन सर्वा ये दधते प्रतिमा इमाः । उत्कृष्टश्रावका विरागिणस्ते जगदर्चिताः ॥३०॥ इमं श्रावकधर्म ये सेवन्ते व्रतिनोऽनिशम् । षोडशस्वर्गपर्यन्ते ते लभन्ते सुखोल्बणम् ॥७१॥ जो पुरुष त्रियोगकी शुद्धि द्वारा अतिचारोंसे रहित इन बारह व्रतोंको पालते हैं, उनके यह श्रेष्ठ दूसरी व्रतप्रतिमा होती है ।।५८। इस प्रतिमाधारी व्रती श्रावकोंको उत्तम पदोंकी प्राप्तिके लिए जीवनके अन्तमें आहार और कषायादिका त्याग और मुनियोंके सकल संयमको धारण करना चाहिए ।।५।।
सामायिक नामकी तीसरी और प्रोषधोपवास नामकी चौथी शुभप्रतिमा है। ( दूसरी प्रतिमामें बताये गये सामायिक और प्रोषधोपवास शिक्षाव्रतको निरतिचार नियमपूर्वक पालन करने पर ही उन्हें प्रतिमा संज्ञा प्राप्त होती है )॥६०। जीव-दयाके लिए जो सचेतन सर्व फल, जल, बीज और सचित्त पत्र-पुष्पादिका त्याग किया जाता है, वह पाँचवीं सचित्तत्याग प्रतिमा है ॥६१॥ मुक्तिकी प्राप्तिके लिए जो रात्रिमें सदा चारों प्रकारके आहारका और दिनमें मैथुन-सेवनका त्याग किया जाता है, वह श्रेष्ठ रात्रिभुक्तित्याग अथवा दिवा मैथुन त्याग नामवाली छठी प्रतिमा है ॥६२।। जो ज्ञानीजन इस जीवनमें त्रियोगकी शुद्धिसे इन छह प्रतिमाओंका पालन करते हैं, सन्तोंके द्वारा वे ग्यारह प्रतिमाधारियोंमें जघन्य श्रावक माने गये हैं। ये सब स्वर्गगामी होते हैं ॥६३॥ मन वचन कायसे सर्व स्त्रियोंको माताके समान मानकर जो ब्रह्मचर्यका पालन किया जाता है, वह सातवीं ब्रह्मचर्य प्रतिमा है ॥६४|| वाणिज्य, कृषि आदि सभी गृहारम्भ निन्द्य और पापके समुद्र हैं। पाप-भीरु जनोंके द्वारा उनका जो त्याग किया जाता है, वह आरम्भ त्याग नामकी आठवीं श्रेष्ठ प्रतिमा है ।।६५।। एक मात्र वस्त्रके विना पापकारी समस्त परिग्रहोंका जो त्रियोगशुद्धिसे त्याग किया जाता है, वह सज्जनोंकी परिग्रहत्याग नामवाली नवमी प्रतिमा है ॥६६।। जो रागभावसे दूर रहकर इन नौ प्रतिमाओंका पालन करते हैं, उन्हें जिनराजोंने मध्यम श्रावक कहा है। वे देवोंसे पूजे जाते हैं ॥६७। घरके आरम्भ में, विवाहादिमें, अपने आहार-पानादिमें और धनके उपार्जनमें अनुमति देनेका त्याग किया जाता है, वह अनुमतित्याग नामकी दसवीं प्रतिमा है ॥६८।। जो कृत-कारितादि दोष-जनित सदोष सर्व अन्नको अभक्ष्यके समान त्याग कर भिक्षासे भोजन करते हैं, वह अन्तिम (ग्यारहवीं ) उत्कृष्ट उद्दिष्टत्याग प्रतिमा है ॥६९।। जो सर्व प्रयत्नके साथ इन सर्व प्रतिमाओंको धारण करते हैं, वे जगत्पूजित विरागी सन्त उत्कृष्ट श्रावक हैं ॥७०॥ जो व्रती पुरुष निरन्तर इस श्रावकधर्मका पालन करते हैं, वे यथायोग्य
For Private And Personal Use Only