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श्री वीरवर्धमानचरिते
कुमारं भासुराकारं ददर्शामा नृपात्मजैः । काकपक्षधरैरे कवयो भिर्बहुभिर्मुदा ||२७|| तं विभीषयितुं क्रूरकालनागाकृतिं सुरः । कृत्वा मूलाद् द्रुमस्याशु यावत्स्कन्धमवेष्टत ॥ २८ ॥ तद्भयात्ते निपस्याशु विटपेभ्यो महोतलम् । दूरे पलायनं चक्रुः सर्वेऽतिमयविह्वलाः ॥२९॥ ललज्जिह्वाशतात्युग्रं तमहिं भीषणाकृतिम् । मुदारुह्य विमीर्धीरो निःशङ्को निर्मलाशयः ॥३०॥ कुमारः क्रीडयामास मातृपर्यङ्कवत्तराम् । तृणवन्मन्यमानस्तमप्रमाणमहाबली ॥३१॥ तद्धैर्यमसमं वीक्ष्य देवः साश्चर्य मानसः । प्रकटीभूय तं स्तोतुं प्रोद्ययौ तद्गुणैः परैः ॥३२॥ त्वं देव जगतां स्वामी धैर्यसारस्त्वमेव हि । स्वं कृत्स्नकर्मशत्रूणां हन्ता त्राता जगत्सताम् ॥३३॥ अनिवार्या भवत्कीर्तिश्चन्द्रिकेवातिनिर्मला । महावीर्यादिजा मन्यैर्लोकनाढ्यां समन्ततः ॥३४॥ त्वन्नामस्मरणाद् देव धीरस्वं परमं भुवि । मङ्क्षु संपद्यते पुंसां सर्वार्थसिद्धिदायकम् ॥३५॥ अत्र नाथ नमस्तुभ्यं नमोऽतिदिव्यमूर्तये । नमः सिद्धिवधूभनें महावीराय ते नमः ॥ ३६ ॥ इति स्तुत्वा महावीरनाम कृत्वा जगद्गुरोः । सार्थकं तृतीयं सोऽस्मान्मुहुर्नत्वा दिवं ययौ ॥ ३७ ॥ कुमारोऽपि क्वचित्कृण्वन् स्वयशः शशिनिर्मलम् । प्रोच्यमानं युगन्धर्वैर्विश्वकर्णसुखप्रदम् ॥३८॥ अन्येद्युः स्वगुणोत्पन्नगीतसागण्यनेकशः । किन्नरीभिः सुकण्ठीभिर्गीयमानानि सादरम् ॥३९॥ अन्यदा नर्तनं चित्रं नर्तकीनां सुरेशिनाम् । पश्यन्नेत्रप्रियं चान्यं नाटकं बहुरूपिणाम् ||४०|| क्वचिदालोकयन् स्वस्य रैदानीतानि शर्मणे । भूषणाम्बरमाल्यानि दिव्यानि स्वर्गजानि च ॥४१॥
[ १०.२७
सुन्दर केशोंके धारक, समान अवस्थावाले अनेक राजकुमारोंके साथ आनन्दसे वृक्षपर चढ़े हुए कीड़ा में तत्पर थे। प्रभुके प्रकाशमान आकारको उस देवने देखा और उन्हें डरानेके लिए उसने क्रूर काले साँपका आकार धारण किया और वृक्षके मूल भागसे लेकर स्कन्ध तक उससे लिपट गया ।। २६-२८ || उस भयंकर साँपको वृक्षपर लिपटता हुआ देखकर उसके भयसे अतिविह्वल होकर सभी साथी कुमार डालियोंसे भूमिपर कूद कूदकर दूर भाग गये || २९ ॥ किन्तु धीर-वीर, निर्भय, निःशंक, निर्मल हृदयवाले वीर कुमार तो लपलपाती सैकड़ों जीभोंवाले, भीषण आकारके धारक उस साँपके ऊपर चढ़कर माताकी शय्या के समान क्रीड़ा करने लगे । अप्रमाणमहाबली प्रभुने उसे तृणके समान तुच्छ समझा ||३०-३१|| वीरकुमारके अतुल धैर्यको देखकर आश्चर्यचकित हृदयवाला वह देव प्रकट होकर उनके उत्तम गुणोंसे इस प्रकार स्तुति करने लगा ||३२|| "हे देव, आप तीनों लोकोंके स्वामी हैं, आप ही महाधीर वीर हैं, आप ही सर्व कर्मशत्रुओंके नाश करनेवाले हैं और जगत् के सज्जनोंके रक्षक हैं ||३३|| चन्द्रिकाके समान अतिनिर्मल महापराक्रमादि गुणोंसे उत्पन्न हुई आपकी कीर्ति भव्य पुरुषोंके द्वारा सारी लोकनालीमें अनिवार्य रूपसे सर्वत्र व्याप्त है ||३४|| हे देव, संसार में आपकी धीरता परम श्रेष्ठ है, आपके नामका स्मरण करने मात्रसे पुरुषोंको सर्व अर्थोंकी सिद्धि करनेवाला धैर्य शीघ्र प्राप्त होता है ||३५|| अतः हे नाथ, आपको नमस्कार है, अतिदिव्यमूर्तिके धारक आपको नमस्कार है, सिद्धिवधूके स्वामी आपको नमस्कार है और महान वीर प्रभु, आपको मेरा नमस्कार है || ३६ || इस प्रकार स्तुति करके और जगद् गुरु वीर प्रभुका 'महावीर' यह तीसरा सार्थक नाम रख करके बार-बार नमस्कार कर वह देव वहाँसे स्वर्ग चला गया ||३७||
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वीरकुमार भी देव गन्धवके द्वारा गाये गये, सबके कानोंको सुखदायी, चन्द्रके समान निर्मल अपने यशको सुनते हुए विचरने लगे ||३८|| कभी सुन्दर कण्ठवाली किन्नरी देवियोंके द्वारा आदरपूर्वक गाये अपने गुणोंका वर्णन करनेवाले गीतों को सुनते, कभी देवनर्तकियोंके विविध प्रकारके नृत्योंको देखते और कभी अनेक रूप धारण करनेवाले देवोंके नेत्र-प्रिय नाटकको देखते थे || ३९-४०|| कभी स्वर्ग में उत्पन्न हुए और कुबेर-द्वारा लाये गये