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१६४ श्री-वीरवर्धमानचरिते
[१६.४३सूक्ष्मबादरभेदाभ्यां दशधा स्थावरास्तथा । त्रसाः सर्वे बुधैज्ञेया इत्येकादश देहिनः ॥४३॥ दशधा स्थावराः सूक्ष्मवादराभ्यां च वर्गिताः । विकलाक्षा हि पञ्चाक्षा अमी जीवा द्विषड्विधाः ॥४४॥ भूजलाग्निसमीराः सर्वे वनस्पतयोऽखिलाः। सुक्ष्मबादरभेदाभ्यां दशधा स्थावरास्तथा ॥४५॥ विकलाङ्गभृत: पञ्चेन्द्रिया हृदयवर्जिताः । संज्ञिनोऽब्रेति मन्तब्यास्त्रयोदशविधाङ्गिनः ॥४६॥ समनस्का मनोहोना द्वित्रितुयें न्द्रियास्तथा । एकाक्षा बादराः सूक्ष्मा एते सप्तविधाङ्गिनः ॥४७॥ पर्याप्तेतरभेदाभ्यां ते सर्वे गुणिता बुधैः । ज्ञातव्यास्तयाय जीवसमासाश्चतुर्दश ॥१८॥ अष्टानवतिभेदादिबहुधा जीवजातयः । श्रीवीरस्वामिना प्रोक्ता गौतमाद्यान् गणान् प्रति ॥४९॥ भूम्यप्तेजोमरुस्काया नित्येतरनिगोदकाः । प्रत्येकं सप्तलक्षाश्च दशलक्षा महीरुहाः ॥५०॥ षडलक्षा विकलाक्षाणां द्विषड्लक्षाश्च योनयः । तिर्यनारकदेवानां नृणां लक्षाश्चतुर्दश ॥५१॥ एवं चतुरशीतिप्रमलक्षा जीवजातयः । समं च कुलकोटीभिः प्रोक्ता देवेन तान् प्रति ॥५२॥ चतुर्धा गतयः पञ्चविधा इन्द्रियमार्गणाः । षटकाया हि तथा पञ्चदशयोगाश्च विस्तरात् ॥५३॥ त्रिधा वेदाः कषायाश्च पञ्चविंशतिसंख्यकाः । अष्टौ ज्ञानानि सप्तैव संयमाश्च शुमेतराः ॥५४॥ चत्वारि दर्शनान्येव षड्लेश्या हि वरेतराः । भव्येतरा द्विधा जीवाः सम्यक्त्वं षड्विधं तथा ॥५५॥
पंचेन्द्रिय, इस प्रकार संसारमें दश प्रकारके जीव हैं ॥४२॥ पाँच प्रकारके स्थावर जीव सूक्ष्म
और बादरके भेदसे दश प्रकारके हैं, तथा द्वीन्द्रियादि सर्व त्रसकाय, इस प्रकार ग्यारह जातिके संसारी प्राणी ज्ञानियोंको जानना चाहिए ।।४३।। सूक्ष्म-बादरके भेदसे वर्गीकृत दश प्रकारके स्थावर जीव, विकलेन्द्रिय और पंचेन्द्रिय (सकलेन्द्रिय) ये सब मिलकर बारह प्रकारके संसारी जीव होते हैं ॥४४।। पृथिवी, जल, अग्नि, वायु और सर्व वनस्पति, ये सब स्थावर जीव सूक्ष्म-बादरके भेदसे दश प्रकारके हैं, तथा विकलेन्द्रिय, मान-रहित असंज्ञी पंचेन्द्रिय और मन-सहित संज्ञी पंचेन्द्रिय इस प्रकारसे संसारी जीव तेरह प्रकारके समझना चाहिए ॥४५-४६।। समनस्क (संज्ञी) पंचेन्द्रिय मन-रहित अमनस्क (असंज्ञी) पंचेन्द्रिय, द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरीन्द्रिय, बादर एकेन्द्रिय और सूक्ष्म एकेन्द्रिय, ये सात प्रकारके प्राणी पर्याप्त और अपर्याप्तके भेदसे गुणित होकर चौदह प्रकारके हो जाते हैं। ये ही चौदह जीवसमास उनकी दया (रक्षा) करनेके लिए ज्ञानियोंको जानने के योग्य है ।।४७-४८।। इस प्रकार विवक्षा-भेदसे उत्तरोत्तर बढ़ते हुए अट्ठानबे आदि अनेक भेद रूप बहुत प्रकार की जीव जातियाँ श्रीवीर स्वामीने गौतमादि सर्व गणोंके लिए कहीं॥४९॥
पुनः वर्धमानदेवने गौतमादि सर्व गणोंको चौरासी लाख योनियोंका वर्णन इस प्रकारसे किया-पृथिवी, जल, अग्नि, वायु, साधारण वनस्पति रूप नित्यनिगोद, इतरनिगोद इन छहों जातिके जीवोंकी सात-सात लाख योनियाँ हैं (६४७=४२ ) प्रत्येक वनस्पतिरूप वृक्षोंकी दश लाख योनियाँ हैं। विकलेन्द्रियोंकी छह लाख योनियाँ हैं, तिर्यंच, नारक और देवोंकी बारह लाख योनियाँ हैं और मनुष्योंकी चौदह लाख योनियाँ हैं । इस प्रकार भगवान्ने कुल कोटियोंके साथ चौरासी लाख प्रमाण जीव जातियाँ कहीं ।।५०-५२।। ___पुनः भगवानने जीवोंकी जातियोंके अन्वेषण करानेवाली चौदह मार्गणाओंका वर्णन करते हुए बतलाया-गति मार्गणा चार प्रकार की है, इन्द्रियमार्गणा पाँच प्रकार की है, कायमार्गणा छह प्रकारको है, योगमार्गणा विस्तारसे पन्द्रह प्रकारकी है (और संक्षेपसे तीन प्रकारकी है। ) ॥५३॥ वेदमार्गणा तीन प्रकारकी है, कषायमार्गणा (संक्षेपसे क्रोधादि चार भेदरूप है और विस्तारसे) पच्चीस भेदवाली है। ज्ञानमार्गणा आठ प्रकारकी है, संयममार्गणा शुभ और अशुभ (असंयम) के भेदसे सात प्रकारकी है, दर्शनमार्गणा चार भेद रूप है, लेश्यामार्गणा तीन शुभ और तीन अशुभके भेदसे छह प्रकारकी है, भव्यमार्गणा भव्य और
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