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जाते हैं। कभी-कभी इन गहनों में जड़ित रत्न-हीरे आदि खो जाते हैं इसलिए प्रतिदिन पहनने के लिए कांच और शंख वाले आभूषण ही अच्छे होते हैं। ऐसे बहुमूल्य अलंकार तो वार-त्योहार पर ही पहने जाते हैं। मैंने ये शब्द सुने। मेरी आशाओं पर पानी फिर गया-मैं क्या कहती, वे बहुत लोभी थे। उत्तम कपड़े भी नहीं पहनने देते। घर में फटे-पुराने वस्त्र पहनने पड़ते। मेरे एक पुत्र हुआ। उसका नाम कर्णकुमार रखा। उसको भी खाने-पीने के लिए पूरा नहीं देते। घर में अपार सम्पत्ति, पर दास-दासी कोई नहीं। इतने कृपण थेवे। एक बार मैं उनकी इच्छा के विपरीत अपने पिता के साथ तीर्थाटन के लिए चली गई। चार महीनों के बाद घर आयी। धन-सेठ बहुत रोष में भरे थे, क्योंकि मैं उनको पूछकर नहीं गई थी। घर पर पहुंचते ही मुझे एक कोठरी में बन्द कर लाठियों से इतना पीटा कि मेरे प्राण-पखेरू उड़ गये।' - 'इतना निष्ठुर!' विक्रमा ने पूछा।
'हां, विक्रमा! बहुत निष्ठुर। और मुझे कुछ भी स्मृति नहीं। किन्तु उस भव में जो व्यथा मैंने भोगी है, वक्या कभी भूली जा सकती है? क्या ऐसी स्वार्थपरायण पुरुष जाति के प्रति श्रद्धा हो सकती है? सखी! एक जन्म में मैं चंपापुरी के राजा के यहां राजकन्या के रूप में जन्मी। मेरा विवाह हुआ। पति का प्रेम मुझे मिला। पर वह कुछ समय तक ही रहा। पति ने दूसरी राजकन्या से पाणिग्रहण कर लिया
और मुझे अपमानित कर दूर फेंक दिया। वे दोनों रंगरलियां मनाते, यात्रा के लिए जाते और मुझे पहनने के लिए अच्छे वस्त्र भी प्राप्त नहीं होते। अपार वेदना में मैं जीवन बिताने लगी। मैं इसी पीड़ा में मृत्युधाम पहुंची। सखी! बताओ, क्या ये दो अनुभव पीड़ादायक नहीं हैं ? नारी की वेदना का तीसरा अनुभव भी तुम सुनो। मैं एक जन्म में मृगी बनी थी। एक दुष्ट मृग की पत्नी हुई...वह मुझे बार-बार पीड़ित करता था। वह अत्यन्त कामान्ध और दुष्ट था...मैं सगर्भा हुई...फिर भी उस दुष्ट ने विवेक नहीं रखा....मैंने उसे समझाया-पर वह कामान्धथा। उसने कुपित होकर मेरे पेट में सींग से प्रहार किया-मेरा पेट फट गया। मैं समता में रही। तत्काल मृत्यु हो गई।'
विक्रमा का हृदय पसीज गया। वह एकटक राजकन्या को देखने लगी। सुकुमारी ने कहा-'विक्रमा! मेरा चौथा अनुभव भी वेदना से भरपूर है।'
२०. अंगुलिनिर्देश राजकन्या ने विक्रमा के सुन्दर नयनों के सामने देखकर कहा-'सखी! मृगी के भव में मेरी मृत्यु शुभ परिणामों में हुई। देवगति में मेरा जन्म हुआ, किन्तु ६८ वीर विक्रमादित्य